देहरादून: पंचायत चुनावों में दो बच्चों से अधिक वालों के चुनाव लड़ने पर रोक सम्बन्धी फैसले पर पंचायत जनाधिकार मंच के संयोजक जोत सिंह बिष्ट ने त्रिवेंद्र सरकार पर जमकर निशाना साधा है।
उन्होंने कहा कि, पंचायत राज अधिनियम संशोधन विधेयक पर माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल द्वारा दिए गए फैसले, जिसमें न्यायालय ने दो से अधिक बच्चों के माता-पिता को 25 जुलाई 2019 की कट ऑफ डेट निर्धारित करके ग्राम प्रधान एवं ग्राम पंचायत सदस्य के पदों पर चुनाव लड़ने का अधिकार दिया था। इस फैसले से उत्तराखंड के 12 ज़िलों में गतिमान पंचायत चुनाव में करीब 62,000 से अधिक पदों पर चुनाव में लोग भागीदारी कर सकते हैं। उच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद सबको यह उम्मीद बंधी थी कि उत्तराखंड सरकार हाईकोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए पंचायतों के प्रथम चरण के चुनाव में सभी पदों पर न्यायालय के फैसले को लागू करते हुए 2 से अधिक संतान वालों को ग्राम प्रधान व ग्राम पंचायत सदस्य के पद पर चुनाव लड़ने का मौका देने के साथ-साथ ज़िला पंचायत सदस्य व क्षेत्र पंचायत सदस्य के पद पर भी चुनाव लड़ने का मौका देगी। लेकिन नामांकन के अंतिम दिन के बाद की तस्वीर से हमारी आशंका सच साबित हुई कि ग्राम पंचायत सदस्यों के करीब 24,000 पदों पर इन नई शर्तों के कारण नामांकन दाखिल नहीं हुए।
उन्होंने कहा सरकार के फैसले से राज्य में ग्राम पंचायत सदस्यों के करीब 45% पद रिक्त रहने के कारण राज्य की करीब 75% ग्राम पंचायतें गठित नहीं हो सकेंगी। साथ ही कहा कि, राज्य सरकार को इस विषय पर विचार करना चाहिए था। लेकिन ऐसा मौका गँवाते हुए पंचायतों की विरोधी उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अपील दायर कर रोक लगाने का आग्रह किया। हालाँकि उच्चतम न्यायालय की तीन सदस्यों वाली बेंच के न्यायाधीशों ने दोनों पक्षों को गंभीरता से सुनने के बाद उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाने से इनकार करते हुए सुनवाई जारी रखने की बात कही।
उन्होंने कहा कि, मैं न्यायालय का आभारी हूँ कि राज्य सरकार के जनविरोधी फैसले और अविवेकपूर्ण निर्णय को खारिज करते राज्य के 62,000 से अधिक ग्राम प्रधान व ग्राम पंचायत सदस्यों के पदों पर 2 से अधिक संतान वालों को चुनाव में शिरकत करने का मौका दिया। लेकिन क्षेत्र पंचायत व ज़िला पंचायत सदस्यों के करीब 3200 पदों पर चुनाव में नामांकन दाखिल कर चुके लोगों को हम न्याय नहीं दिला पाए, इसका हमको अफसोस है।
जोत सिंह ने कहा कि, हमारे द्वारा दायर याचिका में हमारे अधिवक्ताओं ने धारा 8 ग्राम पंचायत, धारा 53 क्षेत्र पंचायत तथा धारा 90 ज़िला पंचायत तीनों स्तर की पंचायत के पदों पर चुनाव लड़ने की योग्यता की सभी अव्यवहारिक शर्तों को हटाने का आवेदन किया था। पैरवी के दौरान भी तीनों पंचायतों के लिए राहत की मांग की गई थी, लेकिन हो सकता है कि न्यायिक प्रक्रिया की बारीकियों को समझने में या अपना पक्ष प्रस्तुत करने में हमारे स्तर पर कहीं कोई चूक हुई हो, जिस वजह से हमें इस मे सफलता नही मिल पाई। अब ग्राम पंचायत का मामला उच्चतम न्यायालय में एवं क्षेत्र पंचायत व जिला पंचायत का मामला उच्च न्यायालय में विचाराधीन है। पंचायत जनाधिकार मंच के माध्यम से हम इन याचिकाओं की निरंतर पैरवी करते हुए भविष्य में ऐसे लोगों को न्याय दिलाने के लिए प्रयास करते रहेंगे।
उन्होंने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि, राज्य की भाजपा सरकार पंचायतों के प्रति पूरी तरह से उदासीन और गैर-जिम्मेदारी का व्यवहार कर रही है, इसका पुष्ट प्रमाण यह है कि राज्य निर्वाचन आयोग ने अपने एक पत्र के माध्यम से राज्य सरकार से ओबीसी वर्ग के लिए शैक्षिक योग्यता एवं गोद लिए और गोद दिए बच्चों के बारे में स्पष्टीकरण मांगा गया था, जिसका जवाब आज तक राज्य सरकार द्वारा नहीं दिया गया। जबकि नामांकन पत्रों की जांच के लिए मात्र 1 दिन बाकी है। ऐसे में सरकार भविष्य में पंचायतों के प्रति कितना सकारात्मक रुख अपनाएगी यह स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रहा है। इसलिए पंचायत एवं पंचायत प्रतिनिधियों के हितों की रक्षा की लड़ाई को हम पंचायत जन अधिकार मंच के माध्यम से केवल न्यायालय तक सीमित रह कर नहीं लड़ रहे हैं। पंचायत चुनाव संपन्न होने के बाद पंचायत के निर्वाचित प्रतिनिधियों के साथ बातचीत करने के बाद इस लड़ाई को आगे बढ़ाया जाएगा। पंचायत जनाधिकार मंच के साथ पुराने पंचायत के प्रतिनिधियों व नव निर्वाचित प्रतिनिधियों को जोड़कर हम पंचायत के प्रतिनिधियों को निर्वाचन के 3 महीने के भीतर प्रशिक्षण देने, पंचायत प्रतिनिधियों को उचित मानदेय, क्षेत्र भ्रमण के लिए उचित संसाधन तथा पंचायतों में विकास कार्यो के लिए पर्याप्त धनराशि उपलब्ध कराने की लड़ाई भी मंच के माध्यम से जारी रखेंगे।
इसके आलावा उन्होंने कहा कि, 73वें संविधान संशोधन में पंचायतों को जिन 29 विषयों पर नियंत्रण का अधिकार देने की बात कही गई है, पंचायतों को वह सभी अधिकार मिले और उन अधिकारों के माध्यम से पंचायत प्रतिनिधि 29 विषय से संबंधित विभागों के अधिकारियों से अपना काम बेहतर तरीके से करा सके और एक अच्छे जनप्रतिनिधि के रूप में खुद को साबित कर सके, ऐसा हमारा प्रयास रहेगा।
उन्होंने लोगों से अपील की है कि, उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्र की जनता किसी के बहकावे में न आएं। सभी लोग सरकार के इस जनविरोधी फैसले के जबाब में दलगत भावना से ऊपर उठकर अपने क्षेत्र से योग्य प्रतिनिधि का चुनाव करें, ताकि आपके क्षेत्र का विकास आपकी भावनाओं के अनुसार हो सके।