देहरादून : झांपू दा…ये वो गाना है, जिसने सूबे की सियासत को हिलकर रख दिया है। उत्तराखंड से लेकर दिल्ली तक सियासी तूफान खड़ा हो गया है। जिस युवा गायक को अब तक कोई नहीं जानता था, वो पवन सेमवाल रोतों-रात स्टार बन गया। झांपू दा गाने को लेकर जहां कांग्रेस, भाजपा पर हावी होने लगी है। वहीं, भाजपा इस मामले में कानूनी चाबुक चलाने की योजना पर काम कर रही है। देखना यह होगा कि सूबे की राजनीति में झांपू दा…कितने रंग लाता है।
असल में झांपू दा…गाने के गायक पर कानूनी कार्रवाई की बात तो सरकार कह रही है, लेकिन सरकार को चिंता भी है कि कहीं उत्तरा बहुगुणा प्रकरण की तरह, यह मामला भी गरमा गया तो सरकार आफत में फंस सकती है। सरकार दोराहे पर है। जिस तरह से गाने ने सीधे मुख्यमंत्री पर वार किया है। उससे एक बात तो तय है कि यह गाना सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को भीतर ही भीतर जरूर कचोट रहा होगा। जुबां पर उनके ये बातें जरूर हैं कि, जिसका जो काम है, वो अपना काम कर रहा है। उसे करने देना चाहिए।
अखबारों ने जिस गाने की खबर को कोनों में सिमटा दिया। उस गाने ने नेशनल मीडिया में टीवी चैनलों की स्क्रीनों पर अपना कब्जा कर लिया। यह गाना कोई आम गाना नहीं है। अगर इसे साजिश भी मान लिया जाए, तब भी गाने में बहुत कुछ सच है। हां यह बात अलग है कि किसी को भी किसी के खिलाफ अभद्रता करने की छूट नहीं दी जा सकती। बहरहाल इस गाने ने प्रदेश में सियासी पारा बढ़ा दिया है।
बात सियासी पारे की है, तो यह भी बातें सामने आ रही हैं कि समाजसेवा के जरिए अपनी पहचान बनाने वाले रोशन रतूड़ी इस गाने के जरिए अपनी सियासी पारी का आगाज कर रहे हैं। इस बात में कितनी सच्चाई है, ये बाद में ही पता चल पाएगा। फिलहाल गाने का वीडियो साफ-साफ तो नहीं, लेकिन उस ओर इशारा जरूर कर रहा है कि कुछ तो है, जो सियासत जैसा है।
झांपू दा…गाने को लोग बेहद पसंद कर रहे हैं। असल में इसका एलान कुछ दिनों पहले ही सोशल मीडिया पर हुआ था, कि जल्द ऐसे गाने रिलीज होने वाले हैं, जो सियासत में तूफां खड़ा कर देंगे। पहाड़ की पीड़ा को उकेरने वाले गानों की एक पूरी सिरजी तैयार की गई है। तब यह समझ में नहीं आ पाया था कि क्या होने वाला है। गाने के रिलीज होने के बाद भाजपा को भले ही कुछ फर्क ना पड़ता हो, लेकिन सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को इससे जरूर चोट पहुंची है। व्यक्तिगततौर पर उनको पीड़ा हुयी ही है। उनकी बातों में उनका दर्द अक्सर नजर आ ही जाता है।
नारायण दत्त तिवारी से लेकर निशंक तक गाने सियासत में बवाल मचा चुके हैं। नौछमी नारायण गाने ने कांग्रेस से सत्ता छीन ली थी। रातों-रात गाना पूरे उत्तराखंड में आग की तरह फैल गया था। अब कतगा खैलो रो गोने ने निशंक की कुर्सी छीनने में प्रमुख कारण रहा। सूबे की सियासत में जब-जब गाने बने। तब-तब कुछ न कुछ बवाल जरूर हुआ है। अब देखना होगा कि इस बार का झांपू दा…गाना क्या गुल खिलाता है।