चमोली: जिले में देवाल ब्लॉक के वाण में स्थित रहस्यमयी प्रसिद्ध लाटू देवता मंदिर के कपाट रविवार को खुल रहे हैं। बता दें कि, इस प्रसिद्ध मंदिर के कपाट साल में सिर्फ एक दिन के लिये ही खुलते हैं। परम्पराओं के अनुसार मंदिर के पुजारी आँख में पट्टी बांधकर यहां पूजा अर्चना करते हैं। साथ ही मंदिर के अन्दर केवल मंदिर के पुजारी ही प्रवेश कर सकते हैं। बाकि आम श्रद्धालुओं का प्रवेश वर्जित होता है और वे मंदिर के बाहर से ही पूजा अर्चना करते हैं।
दुनिया भर में ऐसे कई मंदिर-मस्जिद हैं, जहां महिला-पुरूष के प्रवेश को लेकर आज भी भेदभाव किए जा रहे हैं, लेकिन, इससे अलग उत्तराखंड का लाटू मंदिर एक ऐसा मंदिर है, जहां किसी भी श्रद्धालु को मंदिर के अंदर प्रवेश करने की इजाजत नहीं है। वाण गाँव में स्थित यह प्रसिद्ध लाटू देवता मंदिर आज भी एक रहस्य बना हुआ है। मंदिर के कपाट हर वर्ष वैसाख पूर्णिमा के दिन खोले जाते हैं। इस दिन मंदिर के अन्दर केवल पुजारी प्रवेश करते हैं। इसके पीछे मान्यता है कि, मंदिर के अंदर शिवलिंग में ‘नाग मणि’ विराजमान है, जिसकी शक्ति से आंखों पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है, जिसके चलते पुजारी भी कपड़ा बांधकर मंदिर में प्रवेश करते हैं।
लाटू देवता को उत्तराखंड की आराध्या देवी नंदा देवी का धर्म भाई माना जाता है। प्रत्येक 12 सालों में उत्तराखंड की सबसे लंबी “श्री नंदा देवी की राजजात यात्रा” का बारहवां पड़ाव वांण गांव है। लाटू देवता वांण गांव से हेमकुंड तक नंदा देवी का अभिनंदन करते हैं।
लाटू देवता के बारे में पौराणिक कथा है कि, जब देवी पार्वती यानि नंदा देवी व शिव का विवाह हुआ, तो नंदा को विदा करने के लिए उनके सभी भाई कैलाश की ओर चल पड़े, जिनमे कि नंदा के चचेरे भाई लाटू भी शामिल थे। मार्ग में लाटू को इतनी प्यास लगी कि वे पानी के लिए भटकने लगे। इस बीच लाटू को एक घर दिखा और पानी की तलाश में घर के अंदर जा पहुंचे। इस घर के बुजुर्ग मालिक ने लाटू से कोने में रखे मटके से पानी पीने को कहा। लेकिन लाटू ने पानी समझकर मदिरा वाले घड़े से उसे पी लिया। कुछ ही देर में मदिरा के असर से लाटू ने उत्पात मचाना शुरू कर दिया। जिस पर नंदा ने क्रोधित होकर लाटू को कैद में डाल दिया। तब से नंदा के आदेशानुसार लाटू को हमेशा कैद में ही रख दिया जाता है।
माना जाता है कि, कैदखाने में लाटू देवता एक विशाल सांप के रुप में विरामान रहते हैं। इन्हें देखकर पुजारी डर न जाएं, इसलिए भी वह आंखों पर पट्टी बांधकर मंदिर का द्वार खोलते हैं।