रुद्रप्रयाग: उच्च हिमालयी क्षेत्रों में उगने वाला हिन्दू धर्म से जुड़ा अति बेसकीमती भेाज पत्र धीरे-धीरे समाप्ति की कगार पर है। तंत्र साधना से लेकर हिन्दू धर्मग्रन्थों को लिखने में महत्वपूर्ण भूमिका रखने वाले भोज पत्र के जंगल जलवायु परिवर्तन की भेंट चड़ते नजर आ रहे हैं। अब यह दुलर्भ पेड़ महज गोमुख में भोजवासा व मदमहेश्वर के उपरी क्षेत्रों में सीमित मात्रा में दिखाई दे रहा है। पर्यावरण वैज्ञानिकों ने इसके संरक्षण की बात कही है। जल्द कुछ नहीं किया गया, तो एक दिन यह विलुप्त हो जायेगा।
उच्च हिमालयी क्षेत्र के पौधों की जानकारी रखने वाले अगस्त्यमुनि महाविद्यालय के प्राचार्य व प्रसिद्ध वनस्पत विज्ञानी प्रोपेसर जीएस रजवार का मानना है कि यह पेड़ अति दुर्लभ है और सिर्फ उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पैदा होता है। धीरे-धीरे इसके जंगल सिमटते जा रहे हैं, जिसके पीछे बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन है। अगर हालात यही रहे तो आने वाले दिनों में यह पेड़ महज कल्पनाओ में ही रहेगा। पौराणिक काल में इसका महत्वपूर्ण उपयोग था। इसकी छाल से पाणुलिपियां तैयार की जाती थीं और तंत्र साधना के दौरान भी इसका महत्व था। विकास के नाम पर जिस तरह से प्रकृति का अवैज्ञानिक दोहन हो रहा है। वह हिमालय के लिए एक बड़ा खतरा है। जिसके चलते ट्री-लाइन घटती जा रही है और बुग्याल समाप्त होते जा रहे हैं। औद्यौगिक विकास के चलते ग्लेश्यिर पीछे खिसकते जा रहे हैं और उच्च हिमालयी क्षेत्र में होने वाली वनस्पति व पेड़ समाप्ति की कगार पर हैं।
पर्यावरणविदों का मानान है कि विकास तो हो, मगर उच्च हिमालयी क्षेत्रों में औद्योगिक विकास के बजाय इकोलाॅजी आधारित विकास होना चाहिए। जिससे परितंत्र बचा रहे। अन्यथा आने वाले दिनों में गंभीर परिणाम सामने होगंे और हिमालय पर पहले से मंडरा रहा खतरा और बड़ा हो जाएगा।