जम्मू-कश्मीर: यह एक आम तस्वीर नहीं है, बल्कि यह कश्मीरी हिंदू पंडित लड़कियों की वीर गाथा को दर्शाता है। जब 1947 में पाकिस्तान के आक्रमण के खिलाफ कश्मीर की रक्षा के लिए कश्मीरी हिंदू पंडित लड़कियों ने हथियार उठाए और कश्मीर की रक्षा की। “कश्मीरी आत्मरक्षा वाहिनी” की वीरांगनाओं ने पाकिस्तान को तब तक यहाँ भटकने नहीं दिया, जब तक कि भारत की सेना श्रीनगर नहीं पहुंच गई।
बताया जाता है कि, तत्कालीन कश्मीरी मुस्लिम सम्मेलन के नेता मुहम्मद इब्राहिम खान पाकिस्तान गया और 1947 में पश्तून कबाली को कश्मीर पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया। इन जनजातियों को FATA (आज के तालिबान क्षेत्र) से लाया गया था। उनका आदर्श वाक्य “ज़ार ज़ान ज़मीन” यानि “स्वर्ण, महिला, भूमि” था। उन्हें बंदूक, गोला-बारूद और लोगों के साथ पाकिस्तानी सेना द्वारा मदद की गई थी। वे बारामूला पर पहले ही कहर बरपा चुके थे और सबकुछ नष्ट कर दिया था। उन्होंने बारामूला में हत्या, आगजनी, बलात्कार, मंदिर विनाश समेत सब कुछ किया।
इस तस्वीर में महिलाओं की पहचान (बाएं से) उषा काक, कौशल्या कौल, कृष्णा मिश्री, शांता कस्करी, लीला भान, जय किशोरी धर, इंदु पंडित, खुर्शीद बख्शी, उषा कश्यप, जय किशोरी वैष्णवी और लक्ष्मी रामबल के रूप में की गई है।
यह तस्वीर बताती है यदि उन दिनों राजनेताओं ने मूक गवाहों के बजाय राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाई होती, तो शायद हिंदुओं को कश्मीर से बाहर नहीं निकाला जाता क्योंकि उनमे शौर्य की कभी कोई कमी नहीं रही।