कैसे राजनीति का अखाड़ा बन गया मसूरी शरदोत्सव!

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पूर्णिमा मिश्रा, देहरादूनः मसूरी में संपन्न हुए शरदोत्सव कार्यक्रम नेताओं की आपसी राजनीति की भेंट चढ़ा। शरदोत्सव बैनर पर सिर्फ मुख्यमंत्री, मदन कौशिक व नगरपालिका अध्यक्ष का नाम ही अंकित होने से यहां बैनर राजनीतिक चर्चा का विषय बनकर सामने आया।

सबसे ज्यादा चर्चा इस बात को लेकर थी कि बैनर में स्थानीय विधायक गणेश जोशी का नाम ही नदारद था, जिससे भाजपाई खफा हो गए और इसका राजनीतिक हश्र यह हुआ कि कार्यक्रम में सरकार से लेकर भाजपा का कोई बड़ा नेता आमंत्रण के बावजूद यहां नहीं पहुंचा। इस तरह जिस उद्देश्य के साथ नौ साल बाद शरदोत्सव का आयोजन किया गया वह कार्यक्रम ही राजनीति का अखाड़ा बनकर रह गया।

तटस्थ राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बैनर में स्थानीय विधायक का नाम इसलिए नहीं अंकित किया गया चूंकि पालिकाध्यक्ष मनमोहन मल्ल की उनसे बनती नहीं है। साफतौर पर कहा जाए तो मनमोहन सिंह मल्ल ने अपनी राजनीतिक निहितता के चलते स्थानीय विधायक को बैनर से ही बाहर कर दिया, लेकिन राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि स्थानीय विधायक का नाम बैनर में होना चाहिए था चूंकि यह उनका विस क्षेत्र है।

बैनर में नाम नहीं था तो स्थानीय विधायक गणेश जोशी ने भी शरदोत्सव में शिकरत करना उचित नहीं समझा। सूत्र बताते हैं कि तमाम मंत्री कार्यक्रम में इसलिए सम्मलित नहीं हुए क्योंकि बैनर में मसूरी विधाय नाम शामिल नहीं था।

हालाँकि इससे नाराज भाजपाईयों ने इसका कड़ा विरोध भी किया, लेकिन सवाल फिर भी भाजपा पर आ खड़े होते हैं। शरदोत्सव नौ साल बाद आयोजित हुआ लेकिन न सरकार और न ही भाजपा का नेता कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचा। यदि इसे राजनीतिक रंजिश का एक हिस्सा मान भी लिया जाए तो शरदोत्सव मनमोहन मल्ल जैसे राजनीतिक व्यक्ति का व्यक्तिगत कार्यक्रम नहीं था, यह तो प्रदेश की जनता और कला-संस्कृति के संरक्षण और संवर्द्धन की दिशा में एक सार्थक प्रयास था जिसमें राजनीति को दरकिनार कर स्वार्थपरता से धूल हटाने की जरूरत महसूस की जानी चाहिए।

आपस की राजनीतिक लड़ाई में शरदोत्सव में आने वाले कलाकारों और सांस्कृतिक प्रेमियों को कितनी ठेस पहुंची होगी, इसका इन स्वार्थी नेताओं को जरा भी मलाल नहीं है।

भाजपा नेताओं तो छोड़िए, विकास की उम्मीद के साथ जिस जनता ने प्रदेश का मुखिया चुना वह तक भी इसमें शामिल नहीं हुए। मगर यह साफ हो गया कि उत्तराखंड के नेताओं को जन हित से नहीं बल्कि अपनी राजनीति चमकाने तक ही लोगों की फिक्र है।

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