देहरादून: कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और वनाधिकार आंदोलन के संयोजक किशोर उपाध्याय ने गुरुवार को प्रेस वार्ता की। इस प्रेसवार्ता में मुख्य बिंदु 28 जुलाई को मसूरी में होने वाला हिमालयी राज्यों के मुख्यमंत्रीयों का सम्मेलन और वनाधिकार आंदोलन की मांग रही।
किशोर उपाध्याय ने कहा कि, मध्य हिमालय के लिये समग्र सतत् समावेशी विकास की नीति बने। दूसरे चरण में पंजाब से लेकर प० बंगाल के राज्यों को जोड़ा जाय।हमारे प्राकृतिक संसाधनों के वे सबसे बड़े लाभार्थी हैं। हिमालय की सुरक्षा के लिये विशेष समुदाय का सहयोग मिलना चाहिये। अभी गलत धारणा बलवती हो रही है कि लोग जंगली जानवरों, जंगलों आदि को बचाने की बात कर रहे हैं लेकिन उन अरण्यजनों को बचाने की बात कोई नहीं कर रहा, जिनका जीवन ही यह जंगल थे। वनाधिकार आंदोलन 13 जिलों और 70 विधान सभा क्षेत्रों में इकाईयां गठित कर देवभूमि की युवा व महिला शक्ति को आंदोलन के साथ जोड़ेगा। इस आंदोलन को सशक्त बनाने के लिये राष्ट्रीय स्तर प्लेटफार्म तैयार किया जा रहा है।
किशोर उपाध्याय ने कहा कि, 2009 में चिपको आंदोलन के प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा ने कश्मीर से अरूणाचल तक हिमालयी राज्यों की आवाज को बुलंद करने के लिए यात्रा की, जिसका संयोजन स्वयं किशोर उपाध्याय ने किया था। जिसके पश्चात सर्वप्रथम हिमाचल के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने हिमालयी राज्यों का प्रथम सम्मेलन आयोजित किया था।
उन्होंने कहा कि, ये कॉन्क्लेव सिर्फ ग्रीन बोनस तक सीमित नहीं रहना चाहिए बल्कि, सभी उत्तराखण्ड वासियों को अरण्यजन, गिरिजन घोषित कर केंद्र की सरकार में नौकरी में आरक्षण मिलना चाहिए। पूर्व में हम वनों से लकड़ी, घास लेते थे जिसके एवज में आज हमें एक गैस सिलेंडर औऱ 100 यूनिट बिजली प्रति महीने फ्री दी जानी चाहिए एवं घर बनाने के लिए बजरी, पत्थर, लकड़ी मिलनी चाहिए। जब हमारा पानी दिल्ली की सरकार फ्री दे सकती है तो उत्तराखण्ड में भी फ्री पानी दिया जाना चाहिए। जंगली जानवरों बंदर-सुअर के द्वारा फसल नष्ट करने पर 1500 रु. प्रति नाली फसल का सरकार को किसान को देना चाहिए। साथ ही जंगली जानवर द्वारा जान से मार देने या घायल कर देने पर सरकार 25 लाख रु परिवार को मुआवजा दे। वन अधिकार अधिनियम-2006 को तुरंत उत्तराखण्ड में लागू किया जाना चाहिए जिससे उत्तराखण्ड के लोगों को उनके हक-हकूक मिल सकें।
इसके अलावा किशोर उपाध्याय ने कहा कि, इस सम्बंध में हमने उत्तराखण्ड शासन में सचिव व हिमालयी राज्यों के कान्क्लेव के सह-संयोजक अमित नेगी को 09 बिंदुओं पर एक ज्ञापन दिया है। साथ ही सभी हिमालयी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी ये 09 बिंदु का पत्र भेजा है। अब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत की सहरानीय पहल “हिमालयी राज्यों के कान्क्लेव” में उत्तराखण्ड के जन मानस को कुछ हासिल भी होना चाहिए। ऐसा न हो बुलट ट्रैन, 15 लाख, काला धन की तरह ये हिमालयी राज्यों का कान्क्लेव भी महज जुमला ही साबित हो।
हिमालयी राज्यों के मसूरी कान्क्लेव के लिए वनाधिकार आंदोलन के प्रमुख 09 बिंदु ये हैं…
(1) उत्तराखण्ड को वनवासी प्रदेश घोषित कर उत्तराखंडियों को केंद्र सरकार की नौकरियों में आरक्षण दिया जाए।
(2) जब दिल्ली की सरकार उत्तराखण्ड का पानी दिल्ली की जनता को फ्री दे सकती है तो उत्तराखण्ड सरकार को भी जनता को फ्री पानी दिया जाना चाहिए।
(3) हमारे सारे ईंधन के कार्य जंगल से ही पूरे होते थे, इसलिए 01 गैस सिलेंडर हर महीने फ्री मिलना हमारा हक़ है।
(4) अपना घर बनाने के लिए हमे फ्री पत्थर बजरी लकड़ी आदि मिलना चाहिए।
(5) युवाओं के रोजगार के लिए उत्तराखण्ड में उगने वाली जड़ी-बूटियों के दोहन का अधिकार स्थानीय समुदाय को दिया जाए।
(6) यदि कोई जंगली जानवर किसी व्यक्ति को विकलांग कर देता है या मार देता है तो सरकार को 25 लाख रु मुआवजा व पक्की सरकारी नौकरी देनी चाहिए।
(7) जंगली जानवरों द्वारा फसलों के नुकसान पर सरकार द्वारा तुरंत प्रभाव से 1500 रु प्रति नाली के हिसाब से क्षतिपूर्ति दी जाए।
(8) वन अधिकार अधिनियम-2006 को उत्तराखण्ड में लागू किया जाए। और उत्तराखण्ड को प्रति वर्ष 10 हजार करोड़ ग्रीन बोनस दिया जाए।
(9) तिलाड़ी काण्ड के शहीदों के सम्मान में 30 मई को वन अधिकार दिवस घोषित किया जाए।