देहरादून: तमाम विवादों के बाद चारधाम यात्राओं के लिए हेली सेवाओं को लेकर आखिरकार टेंडर प्रक्रिया अंतिम पड़ाव पर पहुँच ही गई। या यूं कहें नौकरशाहों द्वारा हेली सेवाओं में अपने खेल को अंतिम रूप दे दिया गया। टेंडर के इस खेल में कई संसोधनों के बाद 14 अप्रैल को टेंडर भरने की अंतिम तिथि निर्धारित की गई थी और इस तिथि तक टेंडर की शर्तों पर वे सभी चहेते टेंडर में शामिल हो चुके हैं। साथ ही टेंडर में शामिल सभी को सेवाएं देने का मौका भी मिलेगा। क्योंकि टेंडर की शर्तों को कुछ इस तरह ही ढाला गया है। टेंडर में कुल 9 ऑपरेटरों ने आवेदन किया है। इसके अलावा हेमकुंड साहिब के लिए केवल एक ऑपरेटर ने ही आवेदन किया है।
वहीँ टेंडर की सभी शर्तों को कुछ अन्य ऑपरेटर भी पूरा करते हैं, लेकिन उन्हें विभाग की मिलीभगत से बाहर कर दिया गया है। बाहर हुए ऑपरेटरों में कई ऐसे भी हैं जो केदारनाथ में पहले भी लगातार सेवाएं देते रहे हैं। साथ ही उनके पास केदारनाथ में सेवाएँ देने का 3-3 साल का अनुभव भी है। लेकिन वो भी खुद को ठगा हुआ मासूस कर रहे हैं।
जहाँ सरकार प्रदेश में रोजगार की दृष्टि से नए निवेशकों के लिए अनुकूल माहौल बनाने की बात करती है, वहीँ इस टेंडर में विभाग द्वारा रखी शर्तों से किसी नए ऑपरेटरों को मौका मिलने की बात तो दूर, बल्कि, पुराने कई ऑपरेटरों को भी बाहर कर दिया गया है। इसका असर रोजगार पर पड़ने के साथ ही यात्रियों की सुविधाओं पर भी जरुर पड़ेगा। लेकिन नौकरशाहों को भला जनता से क्या सरोकार। उन्हें तो बस अपने स्वार्थों की पूर्ती करनी है।
इसके आलावा केदारनाथ में कई हैलीपैड मालिकों के साथ भी इस टेंडर के माध्यम से छलावा किया गया है। और हजारों ऐसे लोगों से भी जो इन हैलीपैडों से अपना रोजगार पाते हैं। आपको बता दें कि, केदारनाथ में 14 मान्यता प्राप्त हैलीपैड हैं, जिन पर हैलीपैड मालिकों ने अच्छा-खासा पैसा भी निवेश किया है। साथ ही यात्रा सीजन के दौरान इन हैलीपैड से हजारों स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिलता है। लेकिन इस बार टेंडर को ऐसे ढाला गया है कि, केवल 9 ऑपरेटरों को ही मौका दिया गया है, जिससे अन्य हैलीपैड मालिकों को भी भारी नुकसान वहन करना पड़ेगा। हैलीपैड मालिकों ने अपनी इस समस्या से मुख्यमंत्री से वार्ता कर अवगत भी कराया था, लेकिन मुख्यमंत्री के आश्वासन के बावजूद इन्हें निराशा ही हाथ लगी।
ऐसे में अब सवाल उठता है कि, जब हेली सेवाओं में ऑपरेटरों से उनकी सेवायें छिनी गयी, हैलीपैड मालिकों को भी दरकिनार किया गया, स्थानीय हजारों लोगों को रोजगार से महरूम रखा गया और यात्रियों को भी हेलीकॉप्टरों की समस्या से जूझना पड़ेगा। तो आखिर इसमें किसके लाभ को सर्वोपरि रखा गया है? क्या यह यात्रा कुछ नौकरशाहों के लाभ लिए आयोजित की जा रही है? क्या प्रदेश की जनता से ऊपर नौकरशाहों का हित है? क्या यही भाजपा सरकार की निति सबका साथ सबका विकास का अनुसरण है? क्या यही वो निति है जिससे प्रदेश में नए निवेशक आकर्षित होंगे? क्या इस तरह से लोगों को रोजगार मिल पायेगा? ऐसे कई सवाल हैं जिसका जवाब शायद सरकार या विभाग के पास भी नहीं है।