देहरादून : राजधानी दून में 2009 में में हुए चर्चित रणवीर फर्जी एनकाउंटर मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने 11 पुलिकर्मियों को बरी कर दिया है। जबकि अन्य सात पुलिस कर्मियों की सजा बरकरार रखी है। 2009 को देहरादून में हुए इस एनकाउंटर में कुल 18 पुलिसकर्मियों ने दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट की सजा के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में अपील की थी। जिस पर सुनवाई और बहस के अदालत ने अपना फैसला दिया है ।
11 पुलिस कर्मियों की रिहाई की खबर से पुलिस महकमे ने राहत की सांस ली है। गौरतलब है कि निचली अदालत ने 18 पुलिस कर्मियों को सजा सुनाई थी। 6 जून 2014 को 18 पुलिस कर्मियों को दोषी करार देते हुए 9 जून को उम्र कैद की सजा सुनाई थी। गौरतलब है कि तीस हजारी कोर्ट ने जून 2014 में 17 पुलिसकर्मियों को हत्या, अपहरण, सुबूत मिटाने और आपराधिक साजिश रचने व उसे अंजाम देने के मामले में दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
दिल्ली हाईकोर्ट ने सौरभ नौटियाल, विकास बलूनी, सतबीर सिंह, चंद्रपाल, सुनील सैनी, नागेन्द्र राठी, संजय रावत, दारोगा इंद्रभान सिंह, मोहन सिंह राणा, जसपाल गुंसाई और मनोज कुमार को बरी कर दिया है।
वहीं डालनवाला कोतवाली के तत्कालीन इंसपेक्टर डालनवाला एस.के. जायसवाल, आराघर चौकी इंचार्ज जीडी भट्ट, कांस्टेबिल अजित सिंह, एसओजी प्रभारी नितिन चौहान, एसओ राजेश विष्ट, उप निरीक्षक नीरज यादव और चंद्रमोहन की उम्रकैद की सजा बरकरार रखी है।
यह है पूरा मामला
यह मामला तीन जुलाई 2009 का है। गाजियाबाद के रहने वाले 22 वर्षीय एमबीए छात्र रणबीर सिंह को उत्तराखंड पुलिस ने देहरादून में गोली मारकर हत्या कर दी थी और इसे एनकाउंटर का रंग देने की कोशिश की थी। इस कथित फर्जी मुठभेड में पुलिस ने रणवीर पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई थीं। उस समय पुलिस ने मुठभेड़ में 29 राउंड फायरिंग किए जाने का दावा किया था। पांच जुलाई 2009 को आई पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने पुलिस की पोल-पट्टी खोल दी थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कुल 28 चोटें और 22 गोलियां लगने की बात सामने आई थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, गोली महज तीन फिट की दूरी से मारी गई थी। मामले पर चारों ओर से घिरने और दबाव पड़ने के बाद सरकार ने 31 जुलाई, 2009 को इसकी जांच सीबीआई को सौंपी थी।