नैनीताल: हाईकोर्ट ने ढैंचा बीज घोटाले मामले में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद याचिकाकर्ता ने याचिका को वापस ले लिया है। याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट में इस जनहित याचिका को अन्य तथ्यों व प्रार्थना पत्र के साथ दोबारा दाखिल करने की मांग की। जिसके बाद कोर्ट ने उन्हें अनुमति देते हुए दोबारा जनहित याचिका दायर करने की छूट दे दी। कार्यवाहक न्यायमूर्ति राजीव शर्मा एवं न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई।
मामले के अनुसार, गाजियाबाद निवासी जयप्रकाश डबराल ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि वर्ष 2005-06 में उत्तराखंड में खरीफ की फसल को बढावा देने के बाद ढैंचा बीज वितरण की योजना बनाई गई। उसके बाद 9 फरवरी 2010 को तत्कालीन डायरेक्टर कृषि विभाग ने योजना की कार्यान्वित करने के लिए आवश्यक दिशानिर्देश दिए। उसी दिन हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर, देहरदून व चंपावत में 14900 क्विंटल बीज की आवश्यकता जाहिर करते हुए टेंडर करवा दिए। टेंडर 60 प्रतिशत अधिक दरों पर करवा दिए और सप्लाई भी अधिक कर दी। याचिका में कहा कि उसके बाद 25 फरवरी 2010 को बिना टेंडर प्रक्रिया अपनाए निजी संस्था निधि सीड्स को ठेका दे दिया। 2013 में इस मामले में जांच के लिए त्रिपाठी आयोग का गठन किया गया। याचिकाकर्ता के मुताबिक रिपोर्ट में घोटाले के आरोपों को सही पाया गया और इसके लिए भाजपा सरकार में कृषि मंत्री रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत तत्कालीन कृषि सचिव ओम प्रकाश और मदन लाल को जिम्मेदार ठहराया गया है। फिर भी आरोपियों पर अब तक कोई कार्यवाही नहीं हुई। पक्षों की सुनवाई के बाद याचिकाकर्ता ने जनहित याचिका को वापस ले लिया।