प्रदीप रावत
देहरादून : सुना है सरकार ने सहयोग जुटा लिया है। बहुत बड़ा सहयोग। 25 करोड़ 11 लाख 11 हजार का सहयोग। मेरा सवाल उन नेताओं से है, जिन्होंने कभी गरीबों की सेवा के लिए एक रुपये का भी सहयोग नहीं किया। और तो और भाजपा नेताओं में सहयोग निधि जुटाने की होड़ सी मच गई। कुछ नेताओं ने विरोध भी किया कि टारगेट मत दो पर उनकी भला कौन सुनने वाला था। छुटभैये जो ठैरे।
प्रदेश में कंपीटीशन भाजपा सरकार में बहुत बढ़ गया था, पिछले दिनों। अब खत्म हो गया है। ऐसा कंपीटीशन की हर कोई आगे निकलने की होड़ में था। कौन पहले पास होता है। कौन सबसे ज्यादा लाकर देगा। शाह की नजरों में लाटसाहब जो बनना था। जनाब यह कंपीटीशन भाजपा सरकार और पार्टी के नेताओं के बीच था सहयोग निधि के लिए मोटी रकम जमा करने का। भाजपा ने रकम तो भारी-भरकम जुटा ली, लेकिन चर्चा केवल दो लोगों की हुई। एक छोटे नेता और एक मोटे और लंबे नेता जी की। हो भी क्यों नहीं, कंपीटीशन ही खतरनाक था। नाटे और मोटे का। भई नेता जी बुरा मत मान जाना। माहराजा जी ने लाख का पर्चा दिया तो मंत्री ने करोड़ का ही पर्चा थमा दिया। वैसे छोटे वाले नेता जी राज्य से केंद्र तक खूब चर्चाओं में रहते हैं। लंबे और महाराज टाइप के नेता जी को कोई पूछ ही नहीं रहा बल।
इतना कुछ हो गया, पर सवाल अब भी बरकरार है। वह यह कि नेता जी लोगों ने इतनी मोटी रकम जुटा ली। मैने तो सुना ही है। गिनना तो दूर। देखा भी नहीं आज तक 25 करोड़ 11 लाख और 11 हजार। बहुत ज्यादा होते होंगे बल। यह सवाल मेरा नहीं, उन गरीबों का है, जिनको नेता केवल वोट के लिए ही प्रयोग करते हैं। चुनाव में ही गरीबों की चिंता और उनका दरवाजा याद आता है। वोट के खातिर लोगों को दो-चार सौ रुपये भी पकड़ा देते हैं….बस। जरा सोचो तो जैसा कंपीटीशन सहयोग निधि जमा करने के लिए हुआ। योजनाओं को पूरा करने के लिए हुआ होता तो प्रदेश का विकास एक महीने में ही एक साल के बराबर हो गया होता। वृद्धा अवस्था पेंशन लगाने में जोर लगा देते…किसी गरीब के बेटी की शादी का खर्च उठा लेते…कंपीटीशन करके। कुछ भला उनका हो जाता और तुम्हारे भी कुछ वोट पक्के हो जाते।