देहरादून: चिपको आंदोलन के 45 साल पूरे होने पर गूगल ने डूडल बनाकर याद किया है। इस आंदोलन की शुरुआत 1974 में हुई थी। चिपको आंदोलन एक ऐसा आंदोलन जिसने देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पेड़ों के कटान पर रोक लगानी पड़ी थी। पूरी दुनिया में इस आंदोलन को मिसाल के तौर पर याद किया जाता है। इसकी खास बात यह थी कि इसका नेतृत्व गौरा देवी ने किया था। इसमें बड़ी संख्यां में महिलाओं ने हिस्सा लिया था। महिलाओं ने पेड़ काटने वालों को पेड़ों के बाहर गोल घेरा बनाकर और पेड़ों से चिपक कर पेड़ों को कटने से बचाया था। इसीलिए इसका नाम चिपका आंदोलन पड़ा।
ऐसे हुई आंदोलन की शुरुआत
26 मार्च, 1974 को पेड़ों की कटाई रोकने के लिए चिपको आंदोलन शुरू हुआ था। उस साल जब उत्तराखंड के रैंणी गांव के जंगल के लगभग ढाई हजार पेड़ों को काटने की नीलामी हुई, तो गौरा देवी ने अन्य महिलाओं के साथ पेड़ों की नीलामी का विरोध किया। इसके बावजूद सरकार और ठेकेदार के निर्णय में बदलाव नहीं आया। जब ठेकेदार के पेड़ काटने पहुंचे, तब गौरा देवी और उनके 21 साथियों ने उन लोगों को समझाने की कोशिश की। उनके नहीं मानने पर महिलाओं ने पेड़ों से चिपक कर उन्हें ललकारा कि पहले हमें काटो फिर इन पेड़ों को भी काट लेना। यहीं से चिपको आंदोलनल की शुरुआत हुई। महिलाओं के विरोध के आगे ठेकेदार को झुकना पड़ा। बाद में स्थानीय वन विभाग के अधिकारियों के सामने इन महिलाओं ने अपनी बात रखी। जिसके बाद रैंणी गांव का जंगल नहीं काटा गया।
इनकी वजह से शुरू हुआ आंदोलन
आंदोलन के दौरान पांचवीं क्लास तक पढ़ी गौरा देवी की पर्यावरण विज्ञान की समझ और उनकी सूझबूझ ने अपने सीने को बंदूक के आगे कर कर, अपनी जान पर खेल कर, जो काम किया, उसने उन्हें सिर्फ रैंणी गांव का ही नहीं, उत्तराखंड का ही नहीं, बल्कि पूरे देश का हीरो बना दिया था। इस आंदोलन में मशहूर पर्यावरण विद चंडी प्रसाद भट्ट समेत कई लोगों ने हिस्सा लिया और इसे आगे बढ़ाया। इसी आंदोलन की तर्ज पर देश के दूसरे राज्यों में भी आंदोलन चले। इन दिनों दक्षिण अफ्रिका में भी इसी तरह का आंदोलन चल रहा है।