देहरादून : शहनाई के जादूगर और उस्ताद भारत रत्न बिस्मिला खां को उनकी जयंती पर गूगल ने अपना डूडल उनको समर्पित किया। गूगल ने डूडल पर बिस्मिल्ला खां का डूडल बनाने के साथ ही उनके जीवन से जुडी सभी जानकारियां भी दी हैं। बिस्मिल्ला खां शहनाई के फनकार का नाम है, जिनका नाम जेहन में आते ही शहनाई की धुनों का ख्याल आने लगता है। वे पहले ऐसे व्यक्ति जिन्होंने शहनाई को भारतीय संगीत में महत्वपूर्ण स्थान दिलाया। उनसे पहले भी शहनाई बजायी जाती थी, लेकिन केवल शादियों के मौकों पर ही शगुन के तौर पर बजाय था । उस्ताद बिस्मिल्ला खां ने शहनाई को न केवल भारत मे बल्कि दुनियाभर मे पहचान दिलाई।
जिन्दगी के लम्हे-लम्हे के जरिए शहनाई के लिए अपना इश्क बयां करने वाले उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की आज वीं जयन्ती है । मौका चाहे जो भी हो शहनाई का नाम आते ही उस्ताद बिस्मिल्लाह खां का नाम जहन में आता है । अपनी बेगम के इंतकाल के बाद उस्ताद ने शहनाई को ही अपना इश्क बना लिया था । उनके नाम के पिछे भी एक कमाल का वाकिया जुडा है उस्ताद का जन्म 21 मार्च 1916 को बिहार के भिरूंग गाॅव में हुआ था । इनके वालिद पैग्बंर बक्श और और अम्मी मिट्ठन नें इनका नाम कमरूद्दीन रखा था । जन्म के बाद इन्हें देखते ही दादा रसूल बक्श खान के मुंह से बिस्मिल्लाह निकला था जिसके बाद वो उन्हें बिस्मिल्लाह कहकर बुलानें लगे । इन्होनें जटिल संगीत की रचना में शहनाई को शामिल किया । हिन्दुस्तान के पहले गणतंत्र दिवस पर लालकिले पर शहनाई बजाई थी वो शहनाई की आवाज न जाने कितनों की रूह में जा बसी थी । उन्होनें अपनें रियाज से कई तरीके के संगीत में शहनाई को इज्जत दिलाई । उस्ताद बिस्मिल्लाह खां ने विश्व स्तर पर शहनाई को एक अलग पहचान बनाई थी । सन 2001 मे इन्हें राष्ट्र के सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न से नवाजा गया था । खां साहब के बाद भी शहनाई के साथ कई लोगों का नाम जुडा, लेकिन जिस तरह शहनाई बन तो कई सकती हैं, लेकिन होती एक ही है ठीक उसी तरह उस्ताद बिस्मिल्लाह खां भी एक ही रहेगें जिन्दगी के लम्हे लम्हे के जरिए शहनाई के लिए अपना इश्क बयाॅ करनें वाले उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की आज 11वीं जयन्ती है। मौका चाहे जो भी हो शहनाई का नाम आते ही उस्ताद बिस्मिल्लाह खां का नाम जहन में आता है । अपनी बेगम के इंतकाल के बाद उस्ताद नें शहनाई को ही अपना इश्क बना लिया था । उनके नाम के पिछे भी एक कमाल का वाकिया जुडा है उस्ताद का जन्म 21 मार्च 1916 को बिहार के भिरूंग गाॅव में हुआ था । इनके वालिद पैग्बर बक्श और और अम्मी मिट्ठन नें इनका नाम कमरूद्दीन रखा था । जन्म के बाद इन्हे देखते ही दादा रसूल बक्श खान के मुॅह से बिस्मिल्लाह निकला था जिसके बाद वो उन्हे बिस्मिल्लाह कहकर बुलानें लगे । इन्होनें जटिल संगीत की रचना में शहनाई को शामिल किया । हिन्दुस्तान के पहले गणतंत्र दिवस पर लालकिले पर शहनाई बजाई थी वो शहनाई की आवाज न जानें कितनों की रूह में जा बसी थी । उन्होनें अपनें रियाज से कई तरीके के संगीत में शहनाई को इज्जत दिलाई थी । उससे पहलें गानें बजानें वालों को इज्जत की नजरों से नही देखा जाता था जिस वजह से इनकी अम्मी इन्हे शहनाई वादक के रूप में नही देखना चाहती थी । बावजूद इसके उनके पिता और मामा नें समाज को अनदेखा करते हुए दनका साथ दिया और इन्होनें शहनाई की तालीम ली । उस्ताद बिस्मिल्लाह खां नें विश्व स्तर पर शहनाई को एक अलग पहचान बनाई थी । सन 2001 मे इन्हे राष्ट्र के सर्वोच्च पुरूस्कार भारत रत्न से नवाजा गया था । खां साहब के बाद भी शहनाई के साथ कई लोगो का नाम जुडा, लेकिन जिस तरह शहनाई बन कई सकती हैं, लेकिन होती एक ही है। ठीक उसी तरह उस्ताद बिस्मिल्लाह खां भी एक ही रहेगें । हमेशा के लिए । भारत रत्न बिस्मिल्लाह खां ।