नैनीताल: हाईकोर्ट ने 55 वर्षीय महिला की गैंग रेप कर उसकी हत्या किए जाने के मामले में निचली अदालत की ओर से सुशील व महताब को दी गई फाँसी की सजा को बरकरार रखा है। कोर्ट ने अपीलार्थी पर लगाये गए एससी-एसटी एक्ट को गलत मानते हुए उसे हटा दिया है। साथ ही न्यायालय ने अभियुक्तों को अकेले जेल में रखे जाने के प्राविधान को असंवैधानिक माना है। कोर्ट ने अपने निर्णय में साफ कहा है कि, उनके भी संवैधानिक अधिकार है। सजा के दो तीन दिन तक ही उनको अकेले में रखा जा सकता है। उसके बाद उनको अन्य कैदियों के साथ रखा जाय।
कोर्ट ने कहा कि, जेल मैन्युअल में दिए हुए प्रावधानों को असंवैधानिक माना और कहा कि जेल मेनुअल में फाँसी की सजा पाये अभियुक्तों को 24 घण्टे में से 23 घण्टे अलग रखे जाने का प्रावधान है, जो गलत है और यह भी एक प्रकार की दूसरी सजा से कम नहीं है।
वरिष्ठ न्यायमूर्ति राजीव शर्मा एवं न्यायमूर्ति अलोक सिंह की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। मामले के अनुसार सुशील उर्फ भूरा व मेहताब ने हाईकोर्ट में अपील दायर कर स्पेशल जज एससी एसटी एक्ट देहरादून के 27 जनवरी 2014 के आदेश को चुनौती दी थी जिसमें अभियुक्तों को गैंग रेप कर हत्या करने के आरोप में फांसी की सजा सुनाई गई थी। बता दें कि विकास नगर निवासी अनिल चौहान ने 29 दिसंबर 2012 को विकास नगर थाने में एफआईआर दर्ज कर कहा था कि 55 वर्षीय माँ बकरियों को चराने के लिए जंगल गयी थी। लेकिन वह वापस नही आई। उनकी काफी खोजबीन करने पर उनका शव जंगल में मिला और उनके साथ दुव्यवहार हुआ था। जाँच के बाद दोनों अभियुक्तों की पुष्टि हुई। मृतक के शरीर पर खून व अन्य निशान पाये गए। इस प्रकरण पर स्पेशल जज देहरादून ने 27 जनवरी 2014 को आईपीसी की धारा 302 व 376 जी के तहत निर्मम हत्या करने व दुष्कर्म करने के आरोपियों को फाँसी की सजा सुनाई। निचली अदालत के इस आदेश को अभियुक्तों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। अपीलार्थी के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि अभियुक्तगणों के खिलाफ कोई प्रत्यक्षदर्शी साक्षय नही है उनको संदेह के आधार पर इस केस में फसाया गया है। पक्षों की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट की खंडपीठ ने निचली अदालत के आदेश जिसमें उन्हें फांसी की सजा मिली है उसे बरकरार रखा है।