देहरादून: देवी के नौ रूपों की पूजा का शक्ति पर्व शुरू हो चुका है. घरों में माता की चैकियां सजाई जा चुकी हैं. अलगे नो दिनों तक देशभर में माता के नौ रूपों की पूजा की जाएगी. देशभर में नवरात्र पूजा को लेकर मां के भक्तों में उत्साह है. नवरात्र की पूजा का असर बाजार पर भी नजर आ रहा है. पूजा सामग्री से दुकानें सजाई गई हैं. सामग्री खरीदने के लिए बाजार में हलचल भी तेज हो गई है. वहीं, अलग-अलग जगहों पर पूरे नौ दिनों तक चलने वाले माता के जगराते भी शुरू होने लगे हैं. हिंदू कैलेंडर के अनुसार नवरात्रि वर्ष में दो बार मनाये जाते हैं. शारदीय और वासंतीय नवरात्र. आज यानि 10 अक्टूबर से शारदीय नवरात्र शुरू हो गए हैं. आपको बतातें हिं कि पूरे नौ दिन की पूजा में किन-किन बातों का ध्यान रखना होगा.
शारदीय नवरात्रि की तिथियां
10 अक्टूबर : नवरात्रि का पहला दिन, प्रतिपदा, कलश स्थापना, चंद्र दर्शन और शैलपुत्री पूजन.
11 अक्टूबर : नवरात्रि का दूसरा दिन, द्वितीया, बह्मचारिणी पूजन.
12 अक्टूबर : नवरात्रि का तीसरा दिन, तृतीया, चंद्रघंटा पूजन.
13 अक्टूबर : नवरात्रि का चैथा दिन, चतुर्थी, कुष्मांडा पूजन.
14 अक्टूबर : नवरात्रि का पांचवां दिन, पंचमी, स्कंदमाता पूजन.
15 अक्टूबर : नवरात्रि का छठा दिन, षष्ठी, सरस्वती पूजन.
16 अक्टूबर : नवरात्रि का सातवां दिन, सप्तमी, कात्यायनी पूजन.
17 अक्टूबर : नवरात्रि का आठवां दिन, अष्टमी, कालरात्रि पूजन, कन्या पूजन.
18 अक्टूबर : नवरात्रि का नौवां दिन, नवमी, महागौरी पूजन, कन्या पूजन, नवमी हवन, नवरात्रि पारण.
नवरात्रि का महत्व
हिन्दू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व है. यह पर्व बताता है कि झूठ कितना भी बड़ा और पापी कितना भी ताकतवर क्यों न हो अंत में जीत सच्चाई और धर्म की ही होती है. नवरात्रि के नौ दिनों को बेहद पवित्र माना जाता है. इस दौरान लोग देवी के नौ रूपों की आराधना कर उनसे आशीर्वाद मांगते हैं. मान्यता है कि इन नौ दिनों में जो भी सच्चे मन से मां दुर्गा की पूजा करता है उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं.
क्यों मनाई जाती है नवरात्रि और दुर्गा पूजा?
नवरात्रि और दुर्गा पूजा मनाए जाने के अलग-अलग कारण हैं. मान्यता है कि देवी दुर्गा ने महिशासुर नाम के राक्षस का वध किया था. बुराई पर अच्छाई के प्रतीक के रूप में नवरात्र में नवदुर्गा की पूजा की जाती है. वहीं कुछ लोगों का मानना है कि साल के इन्हीं नौ महीनों में देवी मां अपने मायके आती हैं. ऐसे में इन नौ दिनों को दुर्गा उत्सव के रूप में मनाया जाता है.
कैसे मनाया जाता है नवरात्रि का त्योहार?
नवरात्रि का त्योहार पूरे भारत में मनाया जाता है. उत्तर भारत में नौ दिनों तक देवी मां के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है. भक्त पूरे नौ दिनों तक व्रत रखने का संकल्प लेते हैं. पहले दिन कलश स्थापना की जाती है और फिर अष्टमी या नवमी के दिन कुंवारी कन्याओं को भोजन कराया जाता है. इन नौ दिनों में रामलीला का मंचन भी किया जाता है. वहीं, पश्चिम बंगाल में नवरात्रि के आखिरी चार दिनों यानी कि षष्ठी से लेकर नवमी तक दुर्गा उत्सव मनाया जाता है. नवरात्रि में गुजरात और महाराष्ट्र में डांडिया रास और गरबा डांस की धूम रहती है. राजस्थान में नवरात्रि के दौरान राजपूत अपनी कुल देवी को प्रसन्न करने के लिए पशु बलि भी देते हैं. तमिलनाडु में देवी के पैरों के निशान और प्रतिमा को झांकी के तौर पर घर में स्थापित किया जाता है, जिसे गोलू या कोलू कहते हैं. सभी पड़ोसी और रिश्तेदार इस झांकी को देखने आते हैं. कर्नाटक में नवमी के दिन आयुध पूजा होती है. यहां के मैसूर का दशहरा तो विश्वप्रसिद्ध है.
कैसे रखें नवरात्रि का व्रत?
नवारत्रि के व्रत का मतलब सिर्फ भूखे-प्यासे रहना नहीं बल्कि अपार श्रद्धा और भक्ति के साथ मां की उपासना करना है. भक्त अपने-अपने सामर्थ्य के अनुसार नौ दिनों तक मां की आराधना करते हैं. कुछ लोग पूरे नौ दिनों तक सिर्फ फलाहार ग्रहण करते हैं, वहीं कुछ लोग इस दौरान एक बार भी नमक नहीं खाते हैं. आपको ऐसे भी भक्त मिल जाएंगे जो इन नौ दिनों में केवल लौंग या इलायची खाकर व्रत करते हैं. कहते हैं कि मां दुर्गा बड़ी दयालू हैं और वहं यह नहीं देखतीं कि किसने व्रत में क्या खाया और क्या नहीं बल्कि वो तो अपने भक्त की सिर्फ श्रद्धा देखती हैं. वहीं, कुछ भक्त पहली नवरात्रि और अष्टमी-नवमी का व्रत करते हैं. अगर आप भी नवरात्रि के व्रत रखने के इच्छुक हैं तो इन नियमों का पालन करना चाहिए.
ऐसे करें पूजा
– नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना कर नौ दिनों तक व्रत रखने का संकल्प लें.
– पूरी श्रद्धा भक्ति से मां की पूजा करें.
– दिन के समय आप फल और दूध ले सकते हैं.
– शाम के समय मां की आरती उतारें.
– सभी में प्रसाद बांटें और फिर खुद भी ग्रहण करें.
– फिर भोजन ग्रहण करें.
– हो सके तो इस दौरान अन्न न खाएं, सिर्फ फलाहार ग्रहण करें.
– अष्टमी या नवमी के दिन नौ कन्याओं को भोजन कराएं. उन्हें उपहार और दक्षिणा दें.
– अगर संभव हो तो हवन के साथ नवमी के दिन व्रत का पारण करें.
कलश स्थापना
नवरात्रि में कलश स्थापना का विशेष महत्व है. कलश स्थापना को घट स्थापना भी कहा जाता है. नवरात्रि की शुरुआत घट स्थापना के साथ ही होती है. घट स्थापना शक्ति की देवी का आह्वान है. मान्यता है कि गलत समय में घट स्थापना करने से देवी मां क्रोधित हो सकती हैं. रात के समय और अमावस्या के दिन घट स्थापित करने की मनाही है. घट स्थापना का सबसे शुभ समय प्रतिपदा का एक तिहाई भाग बीत जाने के बाद होता है. अगर किसी कारण वश आप उस समय कलश स्थापित न कर पाएं तो अभिजीत मुहूर्त में भी स्थापित कर सकते हैं. प्रत्येक दिन का आठवां मुहूर्त अभिजीत मुहूर्त कहलाता है. सामान्यतरू यह 40 मिनट का होता है. हालांकि इस बार घट स्थापना के लिए अभिजीत मुहूर्त उपलब्ध नहीं है.
कलश स्थापना की सामग्री
मां दुर्गा को लाल रंग खास पसंद है इसलिए लाल रंग का ही आसन खरीदें. इसके अलावा कलश स्थापना के लिए मिट्टी का पात्र, जौ, मिट्टी, जल से भरा हुआ कलश, मौली, इलायची, लौंग, कपूर, रोली, साबुत सुपारी, साबुत चावल, सिक्के, अशोक या आम के पांच पत्ते, नारियल, चुनरी, सिंदूर, फल-फूल, फूलों की माला और श्रृंगार पिटारी भी चाहिए.
कलश स्थापना
– नवरात्रि के पहले दिन यानी कि प्रतिपदा को सुबह स्नान कर लें.
– मंदिर की साफ-सफाई करने के बाद सबसे पहले गणेश जी का नाम लें और फिर मां दुर्गा के नाम से अखंड ज्योत जलाएं.
– कलश स्थापना के लिए मिट्टी के पात्र में मिट्टी डालकर उसमें जौ के बीज बोएं.
– अब एक तांबे के लोटे पर रोली से स्वास्तिक बनाएं. लोटे के ऊपरी हिस्से में मौली बांधें.
– अब इस लोटे में पानी भरकर उसमें कुछ बूंदें गंगाजल की मिलाएं. फिर उसमें सवा रुपया, दूब, सुपारी, इत्र और अक्षत डालें.
– इसके बाद कलश में अशोक या आम के पांच पत्ते लगाएं.
– अब एक नारियल को लाल कपड़े से लपेटकर उसे मौली से बांध दें. फिर नारियल को कलश के ऊपर रख दें.
– अब इस कलश को मिट्टी के उस पात्र के ठीक बीचों बीच रख दें जिसमें आपने जौ बोएं हैं.
– कलश स्थापना के साथ ही नवरात्रि के नौ व्रतों को रखने का संकल्प लिया जाता है.
– आप चाहें तो कलश स्थापना के साथ ही माता के नाम की अखंड ज्योति भी जला सकते हैं.
नवरात्रि में अखंड ज्योति
हर पूजा दीपक के बिना अधूरी है. दीपक ज्ञान, प्रकाश, श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है. नवरात्रि के नौ दिनों में अखंड ज्योति जलाई जाती है. इसका मतलब है कि इन नौ दिनों में जो दीपक जलाया जाता है वह दिन-रात जलता रहता है. नवरात्रि के पहले दिन व्रत का संकल्प लेते हुए कलश स्थापना की जाती है और फिर अखंड दीपक जलाया जाता है. मान्यता है कि अखंड दीपक व्रत की समाप्ति तक बुझना नहीं चाहिए.
ज्योति के नियम
अगर आप भी नवरात्रि में अखंड ज्योति जलाना चाहते हैं तो इन नियमों का पालन करना जरूरी है.
– दीपक जलाने के लिए सामान्ये से बड़े आकार का दीपक लें. यह मिट्टी का दीपक भी हो सकता है. वैसे पीतल के दीपक को शुद्ध माना जाता है.
– अखंड ज्योति का दीपक कभी खाली जमीन पर नहीं रखना चाहिए.
– इस दीपक को लकड़ी के पटरे या किसी चैकी पर रखें.
– पटरे या चैकी पर दीपक रखने से पहले उसमें गुलाल या रंगे हुए चावलों से अष्टदल बनाएं.
– अखंड ज्योति की बाती रक्षा सूत्र से बनाई जाती है. इसके लिए सवा हाथ का रक्षा सूत्र लेकर उसे बाती की तरह बनाएं और फिर दीपक के बीचों-बीच रखें.
– अब दीपक में घी डालें. अगर घी उपलबध न हो तो सरसों या तिल के तेल का इस्तेमाल भी कर सकते हैं.
– मान्यता अनुसार अगर घी का दीपक जला रहे हैं तो उसे देवी मां के दाईं ओर रखना चाहिए.
– अगर दीपक तेल का है तो उसे देवी मां के दाएं ओर रखें.
– दीपक जलाने से पहले गणेश भगवान, मां दुर्गा और भगवान शिव का ध्यान करें.
– अगर किसी विशेष मनोकामना की पूर्ति के लिए यह अखंड ज्योति जला रहे हैं तो पहले हाथ जोड़कर उस कामना को मन में दोहराएं.
– अब ष्ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।ष् मंत्र का उच्चारण करते हुए दीपक जलाएं.
– अब अष्टदल पर कुछ लाल फूल भी रखें.
– ध्यान रहे अखंड ज्योति व्रत समाप्ति तक बुझनी नहीं चाहिए. इसलिए बीच-बीच में घी या तेल डालते रहें और बाती भी ठीक करते रहें.