नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट राफेल डील की कोर्ट की निगरानी में एसआईटी जांच की मांग वाली चार याचिकाओं पर शुक्रवार को अपना फैसला सुना दिया है. मामले में मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट में बड़ी राहत मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने राफेल सौदे को लेकर सभी याचिकाएं खारिज करते हिये कहा कि इस सौदे को लेकर कोई शक नहीं है और कोर्ट को इस मामले में अब कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहती है. कोर्ट ने साथ में यह भी कहा है कि विमान खरीद प्रक्रिया पर भी कोई शक नहीं है. अदालत ने कहा है कि सरकार की बुद्धिमता को पर जजमेंट लेकर नहीं बैठे हैं. बता दें कि कोर्ट यह भी तय करना था कि राफेल डील नियमों के मुताबिक़ प्रक्रिया अपनाई गई या नहीं. तीन जजों की पीठ फैसला सुनाएगी. कोर्ट ने 14 नवंबर को फैसला सुरक्षित रखा लिया था. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि राफेल सौदा मामले की जांच नहीं होगी. ऑपसेट पार्टनर चुनने में पक्षपात के कोई सबूत नहीं मिले हैं. हम किसी की धारणा के आधार पर फैसला नहीं दे सकते हैं.
राफेल सौदे की जांच के मामले में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ फैसला सुनाएगी. इस मामले में मनोहर लाल शर्मा, विनीत ढांडा, आम आदमी पार्टी के सासंद संजय सिंह, प्रशांत भूषण, अरुण शौरी और यशवंत सिन्हा की याचिकाओं पर फैसला सुनाया. इन याचिकाओं में राफेल सौदे की कीमत और उसके फायदों की जांच कराने की मांग की गई है और कहा गया है कि ज्यादा कीमतों पर डील हुई और गलत तरीके से ऑफसेट पार्टनर चुना गया. इसलिए डील को रद्द किया जाए. केंद्र ने सुनवाई में 36 राफेल लड़ाकू विमानों की कीमत और उसके फायदे के बारे में कोर्ट को सीलबंद दो लिफाफों में रिपोर्ट सौंपी थी. अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि हमने राफेल की कीमत की जानकारी साझा कर दी है, लेकिन इसको रिव्यू करना एक्सपर्ट का काम है. इसको न्यायपालिका रिव्यू नहीं कर सकती है. इस सौदे में कथित अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए सबसे पहले अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा ने जनहित याचिका दायर की थी.
इसके बाद, एक अन्य अधिवक्ता विनीत ढांडा ने याचिका दायर कर शीर्ष अदालत की निगरानी में इस सौदे की जांच कराने का अनुरोध किया था. इस सौदे को लेकर आप के सांसद संजय सिंह और इसके बाद दो पूर्व मंत्रियों तथा भाजपा नेताओं यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी के साथ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने एक अलग याचिका दायर की. इस याचिका में अनुरोध किया गया कि लड़ाकू विमानों की खरीद के सौदे में कथित अनियमितताओं के लिए केन्द्रीय जांच ब्यूरो को प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया जाए. केन्द्र सरकार ने फ्रांस से 36 लड़ाकू विमान खरीदने के सौदे का पुरजोर बचाव किया और इनकी कीमत से संबंधित विवरण सार्वजनिक करने की मांग का विरोध किया. भारत ने करीब 58,000 करोड़ रुपये की कीमत से 36 राफेल विमान खरीदने के लिए फ्रांस के साथ समझौता किया है ताकि भारतीय वायुसेना की मारक क्षमता में सुधार किया जा सके.
शीर्ष अदालत ने इन याचिकाओं पर सुनवाई पूरी करते हुए कहा था कि राफेल विमान की कीमतों के बारे में तभी चर्चा हो सकेगी जब वह फैसला कर लेगा कि क्या इन्हें सार्वजनिक किया जाना चाहिए. न्यायालय ने यह टिप्पणी उस वक्त की थी जब सरकार ने विमान सौदे की कीमतों के विवरण का सार्वजनिक रूप से खुलासा करने से इनकार करते हुए कहा था कि इससे देश के दुश्मनों को लाभ मिल सकताहै. राफेल सौदे में कथित अपराधिता के मुद्दे और इसकी न्यायालय की निगरानी में जांच कराने की दलीलों पर शीर्ष अदालत ने दसाल्ट एविएशन द्वारा आफसेट साझेदार का चयन और फ्रांस के साथ अंतर-सरकार समझौते सहित अनेक मुद्दों पर सरकार से सवाल किए थे. लड़ाकू विमान की कीमत सार्वजनिक करने से इनकार करते हुए अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि 2016 में सिर्फ विमान की कीमत मुद्रा विनिमय की दर के आधार पर 670 करोड़ रुपये थी और विमान में लगी सैन्य साजोसज्जा की कीमत का खुलासा करने से प्रतिद्वन्दियों को लाभ मिल सकता है. इसके विपरीत, प्रशांत भूषण ने कहा था कि केन्द्रीय कानून मंत्री ने दो मुद्दों पर आपत्ति की थी परंतु सरकार ने इसके बावजूद समझौता किया.