रुद्रप्रयाग: भैातिकवाद के मौजूदा दौर में भी उत्तराखण्ड के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी परंपराएं जीवन्त हैं। हम आपको दिखा रहे हैं एक ऐसी परंपरा जो चैत्र मास आते ही बच्चों के लिए एक त्यौहार के रुप में आती है और पूरे एक सप्ताह तक बच्चे आपसी सौहार्द के साथ इसे मनाते हैं।
स्थानीय बोली में इसे घोगा नचाई कहा जाता है। जिसमें चैत्र मास की पहली गते से गांवों में छोटे बच्चे घर-घर फूल डालने जाते हैं और गृहस्वामी उन्हें अनाज व अन्य वस्तुएं उपहार में देते हैं। पूरे सप्ताहभर इस आयोजन के बाद सभी बच्चे इक्कठा होकर अठवाड मनाते हैं, जिसमें उन्हें मिली सामाग्री का भेाजन बनाया जाता है और फिर पूरा गांव उस भेाजन को आपस में परोशता है।
केदारघाटी में होली हिमालयन स्वयं सेवी संगठन द्वारा इस आयेजन को बृहद स्तर पर करवाया गया और आज इस समारोह में 38 टीमों ने प्रतिभाग किया। गांवों के बच्चे जो कि घोगा टीम के सदस्य होते हैं, बढ-चढ कर प्रतिभाग करते हैं। कार्यक्रम के आयेाजकों का कहना है कि यदि फुलारी महोत्सव को बाल महोत्सव के रुप में प्रदेश सरकार आयोजित करती है तो प्रदेश को पूरे देश में अलग पहचान मिलेगी।
वर्ष 2011से केदारधाटी में फुलारी महोत्सव का शुभारंभ तो हुआ और स्थानीय बच्चों ने इस महापर्व में बढ-चढ कर प्रतिभाग भी किया, लेकिन अब सवाल यह है कि जब स्थानीय मेलों को राज्य स्तरीय दर्जा मिल सकता है तो फिर बच्चों के फुलारी महोत्सव को क्यों बाल महोत्सव के रुप में घोषित नहीं किया जाता। यदि यह महोत्सव सरकार की तरफ से घोषित हो जाता है तो प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश व विश्व में भी उत्तराखण्ड की इस अनोखी परंपरा को नये आयाम जरुर मिलेंगे।