रुद्रप्रयाग : अतिसंवेदनशील गांवों में रहने को मजबूर हो रखे ग्रामीणों के प्रति प्रदेश की सरकारें कितनी संवेदनशील हैं इसकी बानगी साफ दिख रही है। रुद्रप्रयाग जनपद के 24 गांवों के 472 परिवारों की समस्या कोई सुनने को तैयार नहीं है। चार दशक से ऊपर का समय गुजर चुका है मगर अभी तक इन परिवारों का विस्थापन तक नहीं हो पाया है जिससे इन गांवों के सैकडों परिवार हर समय मौत के साये में जीने को मजबूर हैं और सरकार व प्रशासन हर बार सर्वे करवाने व मामला संज्ञान में होने का ही रटा रटाया जवाब देने पर लगे हैं।
रूद्रप्रयाग के छांतीखाल, पांजणा, व रैल गांव के विस्थापन के मसले को दशकों बीत चुके हैं मगर आज भी यहां के ग्रामीण आस लगाये हैं कि सरकार कभी तो अपनी नींद से जागेगी और उन्हें सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाएगी। यही नहीं इन तीन गावों के साथ ही 21 अन्य गांव भी ऐसे हैं जो कि विस्थापन की जद में हैं और सरकार को इनकी रिपोटें भी वर्षों पूर्व जा चुकी हैं। छांतीखाल गांव बहुचर्चित सिरोबगड़ स्लाइड के ठीक ऊपर बसा है और यहां से अधिकांश परिवार अपने आप को स्वयं विस्थापित कर चुके हैं मगर आठ परिवार आज भी आर्थिक संसाधनों के अभाव में ऐसे हैं जो सरकार की राह ताक रहे हैं।
ग्राम सभा के पूर्व प्रधान नरेन्द्र मंमगाई का कहना है कि सडक मार्ग को खतरा समझते हुए सरकार ने तो यहां पर बाई पास मोटर मार्ग का निर्माण प्रस्तावित कर दिया है मगर इन परिवारों के बारे में सोचने के लिए लगता है सरकार के पास समय ही नहीं है। वहीं जिलाधिकारी की मानें तो उनके द्वारा पूर्व में भी प्रस्ताव शासन को भेजा जा चुका है और अब फिर से सर्वे कर रिपोर्ट शासन को भेजी जायेगी।
तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार में तो ग्रामीण अंचलों की आवाज लखनऊ तक नहीं पहुंच पाती थी मगर राज्य बनने के बाद भी यही लग रहा है कि देहरादून में भी हमारे हुक्मरानों के कानों तक ग्रामीणों का दर्द नहीं पहुंच पा रहा है।