रुद्रप्रयाग: सरकारी तन्त्र की लापरवाह कार्यप्रणाली किस तरह से एक बडे व्यावसायिक उपक्रम को निलामी की कगार पर पहुंचा देता है, इसका बडा उदाहरण रुद्रप्रयाग के तिलवाडा की विरोजा फैक्ट्री में देखने को मिल रहा है। वर्ष 1977 में तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार की यह बडी इकाई आज इस तरह खण्डहर बन चुकी है कि, निलामी के बाद इससे चन्द रुपयों का ही राजस्व मिल पायेगा। जबकि कभी इस संस्थान में सैकडों युवकों को रोजगार मिलता था साथ ही सरकार के खजाने में भी अच्छी-खासी बढोत्तरी होती थी।
तिलवाडा की इस फैक्ट्री को एक बडे व्यसायिक उपक्रम के रुप में जाना जाता था। तिलवाडा के स्थानीय पांच गावों ने उस दौरान रोजगार को लेकर अपनी जमीनें सरकार को दान दी थी, जिसके ऐवज में स्थानीय युवकों को रोजगार भी दिया गया था। यहां पर पूरे क्षेत्र का लीसा आता था जिसके जरिये कोलतार व विरोजा तैयार किया जाता था। लेकिन बाद में फैक्ट्री प्रबन्धन की लापरवाहियों के चलते फैक्ट्री घाटे में जाने लगी और कर्मचारियों की छंटनी भी शुरु हो गयी। आलम यह है वर्षों पूर्व फैक्ट्री बन्द हो चुकी है और अब यहां की भारी-भरकम मशीनरी सड़ने की कगार पर है।
वहीं इस पर रुद्रप्रयाग विधायक भरत सिंह चौधरी का कहना है कि, पूरी वस्तुस्थिति को समझने के बाद फैक्ट्री के परिसर से जनपद के विकास में क्या कुछ खाका तैयार किया जा सकता है इसके लिए सरकार से वार्ता करेंगे।
इसके अलावा गढवाल आयुक्त दलीप जावलकर ने फैक्ट्री का निरीक्षण कर गढवाल मण्डल विकास निगम के अधिकारियों को जमकर लताड लगाई। उन्होने स्वीकारा कि भारी भरकम मशीनरी का समय पर ऑक्शन किया जाता तो, बहुत अच्छा राजस्व की प्रप्ति सरकार को होती लेकिन, अब अधिकांश सामाग्री सड़ चुकी है। साथ परिसर का भी सदुपयोग होता जिससे रोजगार भी बढ़ता व राजस्व भी मिलता।
साथ ही स्थानीय बेरोजगारों को आज भी सरकार से आस थी कि, फैक्ट्री को पुनर्जीवित किया जाता, जिससे ये फैक्ट्री रोजगार का एक बडा जरिया बनती या फिर यहां कुछ दूसरी व्यावसायिक इकाई खोली जाती, जो कि जिले के विकास में मील का पत्थर साबित होती। लेकिन निलामी के बाद तो यही कहा जा सकता है कि, आखिर सरकार के पलायन आयोग के सदस्य पहाडों से पलायन रोकने के लिए क्या ऐसी ही कार्ययोजनाएं तैयार कर रहे हैं, जिससे पलायन रोकने के बडे उद्यम महज नीलाम होते जा रहे हैं और पहाडों से बदस्तूर पलायन जारी है।