मसूरी: अपनी संस्कृति के लिए प्रसिद्ध माना जाने वाला जौनपुर के बंगलों की कांडी में पहाड़ी दिवाली का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया गया। बता दें कि इस त्यौहार को स्थानीय भाषा में बग्वाल कहा जाता है। इस त्यौहार में पटाखों की जगह होल्डे खेले जाते है, जो यहां एक पारंपरिक रिवाज है। इस पहाड़ी दिवाली को लेकर कई पौराणिक मान्यता व कहानियां हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि जब भगवान राम चौदह साल के वनवास के बाद अयोध्या पहुंचे थे तो अयोध्या वासियों ने उनका दिए जलाकर स्वागत किया था।
कहा जाता है कि गढ़वाल क्षेत्र में भगवान राम के अयोध्या आने की खबर एक महीने बाद मिली, जिससे पहाड़ों में दिवाली के एक महीने बाद ही इस त्यौहार को मनाया जाता है। मानते है। इस दिवाली के दिन सभी के घरो में विभिन्न तरह के पकवान बनाये जाते हे और घास से एक लम्बा रस्सा बनाकर खींचा जाता है। सबसे पहले जो युवा लड़के इस घास को लेने के लिए जाते है उन युवाओं के पैर धोकर व तिलक लगाकर भोजन कराया जाता है औऱ ढोल नगाडों के साथ लोक नृत्य कर लंबे रस्से को बनाया जाता है। इसके अलावा कहा जाता है कि घास से बना रस्सा नाग देवता का रूप होता है और इसे पूजकर बुढ़ी दिवाली को नाच-गानों के साथ बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।