नई दिल्ली : केंद्र सरकार द्वारा तमाम सेक्टरों में रोजगार सृजन के दावों पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में बेरोजगारी दर पिछले 20 वर्षों में सबसे अधिक हुई है। इतना ही नहीं, इसमें युवाओं में बेरोजगारी की दर 16 फीसद तक पहुंच गई है। बेरोजगारी दर बढ़ने के पीछे दो वजहें सामने आई हैं। पहली, नौकरियों के सृजन की रफ्तार बहुत धीमी है और दूसरी, इंडस्ट्रीयों में कार्यबल में कटौती की जा रही है। अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के सतत रोजगार केंद्र ने नौकरियों को लेकर एक अध्ययन किया। इसमें इस तरह की कई चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं।
विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ लिबरल स्टडीज ने देश में बढ़ती बेरोजगारी से पर्दा उठाने वाली ”स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया- 2018” रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट के आंकड़े श्रम ब्यूरो के पांचवीं वार्षिक रोजगार-बेरोजगारी सर्वेक्षण 2015-2016 पर आधारित हैं। श्रम मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, कई सालों तक बेरोजगारी दर दो से तीन प्रतिशत के आस पास रहने के बाद साल 2015 में पांच प्रतिशत तक पहुंच गई, इसके साथ ही युवाओं में बेरोजगारी की दर 16 प्रतिशत तक पहुंच गई।
स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया- 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक, 2015 में बेरोजगारी दर पांच प्रतिशत थी, जो पिछले 20 वर्षो में सबसे ज्यादा देखी गई है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वृद्धि के परिणामस्वरूप रोजगार में वृद्धि नहीं हुई है। अध्ययन के मुताबिक जीडीपी में 10 फीसदी की वृद्धि के परिणामस्वरूप रोजगार में एक प्रतिशत से भी कम की वृद्धि हुई है।
रिपोर्ट में बढ़ती बेरोजगारी को भारत के लिए नई समस्या बताया गया है। दूसरी तरफ, सरकार की तरफ से 2015 के बाद से समग्र रोजगार की स्थिति पर कोई डेटा भी जारी नहीं किया गया है।
सेंटर फॉर मॉनीटरिंग द इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) जैसे निजी स्रोतों के उपलब्ध डेटा से पता चलता है कि, नौकरियों का सृजन कमजोर ही बना रहेगा। सीएमआईई डेटा यह भी दर्शाता है कि, नोटबंदी के परिणामस्वरूप नौकरियों में कमी आई, सरकार ने इस पर भी कोई डेटा जारी नहीं किया।
रिपोर्ट में एक और चौंकाने वाली बात सामने आई कि, भारत में अंडर एंप्लॉयमेंट और कम मजदूरी की भी समस्या है। तो दूसरी ओर, उच्च शिक्षा प्राप्त और युवाओं में बेरोजगारी की दर 16 प्रतिशत तक पहुंच गई है। वैसे तो बेरोजगारी की चपेट में पूरा देश है, लेकिन देश के उत्तरी राज्य जैसे- उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश आदि इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं, जिससे तमाम सेक्टरों में रोजगार के अवसर बढ़ाने के सरकार के दावों पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।