दिल्ली चुनाव: चुनाव के रिजल्ट घोषित होने में कुछ घंटे बाकी हैं। वोटों की गिनती अभी तक चालू है। लेकिन कुछ सीटों पर बढ़त के हिसाब से साफ है कि इन चुनावों में आम आदमी पार्टी का परचम लहराया है। 70 सीटों में आम आदमी पार्टी को दो-तिहाई से ज़्यादा सीटें मिलने का अनुमान है। भारतीय जनता पार्टी ने पिछले चुनाव की तुलना में बेहतर प्रदर्शन तो किया है लेकिन वह सत्ता से बेहद दूर है। दिल्ली की जनता ने विधानसभा में हर मुद्दे पर गौर करने के बाद BJP को विकल्प के तौर पर नहीं देखा। ना ही उन्हें देश के गृह मंत्री अमित शाह की ‘शाहीन बाग में करेंट लगने’ वाला बयान पसंद आया है। देखा जाए तो दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने हर पोस्टर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे का इस्तेमाल किया। लेकिन बात मोदी के चेहरे पर भी नहीं बनी।
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में बीजेपी की हार का क्या कारण हैं…
स्थानीय चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे-
2019 में लोकसभा चुनाव हुए बीजेपी जीती, नरेंद्र मोदी फिर प्रधानमंत्री बने। अगला चुनाव 2024 में। लेकिन बीजेपी के चुनाव प्रचार पर गौर करें तो लगता है कि दिल्ली में विधानसभा चुनाव नहीं, लोकसभा के चुनाव लड़े जा रहे हैं। पार्टी का कहना था कि मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से 370 को हटाया। पड़ोसी मुल्क में अल्पसंख्यकों को मदद से लिए नागरिकता संशोधन कानून बनाया और मुस्लिम महिलाओं के तीन तलाक को गैर-कानूनी घोषित किया। वोटर इतना भी भोला नहीं है कि वह स्थानीय और राष्ट्रीय मुद्दों में फर्क कर सके। दिल्ली में रहने वाले वोटरों के लिए पानी, बिजली, शिक्षा और चिकित्सा जैसे मुद्दे ज़्यादा अहमियत रखते हैं। इन मुद्दों का बोलबाला आम आदमी पार्टी के कैंपेन में दिखा।
बीजेपी मेरे पास सिर्फ मोदी है-
इन दिनों बीजेपी की सिर्फ एक ताकत है, वो हैं नरेंद्र मोदी। लेकिन हलही में हुए विधानसभा चुनावों में उनके नाम के इस्तेमाल ने मन-मुताबिक नतीज़े नहीं दिए हैं। ऐसा दिल्ली चुनाव के शुरुआती रुझान भी इशारा दे रहे हैं। इस चुनाव में दिल्ली के लोगों को शायद एक बात समझ आ गई थी कि अगर वे बीजेपी को वोट देते भी हैं तो भी नरेंद्र मोदी दिल्ली के मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे। अब एक नज़र दिल्ली बीजेपी के नेताओं की सूची पर डाली जाए तो कोई भी नेता अरविंद केजरीवाल को चुनौती देता नहीं दिखता। ऐसे में बीजेपी विकल्प नहीं दे पाई। जो आम आदमी पार्टी के पक्ष में जाता है।
सकारात्मक नहीं था कैंपेन
ये बात हर कोई मानता है कि नकारात्मक कैंपेन वैसे नतीजे नहीं देता जो जैसा सकारात्मक कैंपेन दे सकता है। बीजेपी पार्टी के संकल्प पत्र में कई लोकलुभावने वादे थे, लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान विपक्षी पार्टियों पर किए गए हमले बेहद ही नकारात्मक चरित्र के थे। अरविंद केजरीवाल के लिए ‘आतंकवादी’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल, किसी भी दिल्ली वोटर के गले नहीं उतरता। इसके अलावा पार्टी ने आखिरी 10 दिनों में चुनाव प्रचार को शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन कानून को लेकर चल रहे धरना प्रदर्शन पर केंद्रित करने की कोशिश की। इस दौरान भी बीजेपी के कई स्टार प्रचारकों ने बेबुनियादी और संप्रदाय विशेष के खिलाफ भड़काऊ बयान दिए।
कमज़ोर होती अर्थव्यवस्था और नहीं पूरे होते सपने…
देखा जाए तो दिल्ली बहुत हद तक शहरी क्षेत्र है। दिल्ली में देश के हर राज्य के लोग रहते हैं। यानी एक ऐसा क्षेत्र जिसमें कमजोर होती अर्थव्यवस्था का सबसे ज़्यादा असर देखने को मिलना चाहिए। ऐसा हुआ भी है। भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता भले ही ये बोलें कि देश में सबकुछ ठीक है। हम तेज़ी से विकास कर रहे हैं। लेकिन आर्थिक आकंड़े कुछ और ही सच्चाई बयां करते हैं। देश पर मंदी का खतरा मंडरा रहा है। ऐसे में असर मार्केट में भी दिखता है। और यहां से माहौल बनता है कि सबकुछ ठीक नहीं है। यह पहलू बीजेपी के लिए भारी पड़ा है।
कांग्रेस के वोटर कहां गए?
अब तक हुई वोटों की गिनती से यह तो साफ है कि कांग्रेस ने इस चुनाव में हिस्सा लिया। इसके अलावा कुछ नहीं किया। ना कोई रणनीति और ना ही कोई नेता। एक वक्त पर दिल्ली में लगातार तीन बार सत्ता पर काबिज रहने वाली पार्टी पूरी तरह से ध्वस्त हो गई है। स्थिति तो यह है कि पार्टी को पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में भी कम वोट मिलते दिख रहे हैं। ऐसे में सवाल यही उठता है कि इसका फायदा किसको हुआ? बीजेपी के वोट तो बढ़े लेकिन कुछ सीटों पर कांग्रेस के कमज़ोर प्रदर्शन ने आम आदमी पार्टी के लिए राह आसान कर दी।