देहरादून: प्रदेश में नामांकन प्रक्रिया संपन्न होने के साथ ही निकाय चुनाव के प्रचार ने जोर पकड़ लिया है। ज्यादातर सीटों पर भाजपा-कांग्रेस के बीच ही सीधा मुकाबला नजर आ रहा है। इस बार वार्डों में भी पार्टी सिंबलों की लड़ाई ज्यादा मजबूत नजर आ रही है। हालांकि वार्डों में पार्टी सिंबल से कई अधिक व्यक्तिगत स्तर पर ही चुनाव लड़ा जाता है। लेकिन, मेयर पद पर प्रदेश की सभी सीटों पर भाजपा-कांग्रेस की सीधी टक्कर है। देहरादून और हल्द्वानी दो ऐसी सीटें हैं, जहां सीधे तौर पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश की प्रतिष्ठा दांव पर है।
देहरादून की बात करें, तो यहां सीधे तौर पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की प्रतिष्ठा, सरकार, पार्टी और व्यक्तिगत रूप से दांव पर लगी है। दरअसल, सुनील उनियाल गामा को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का करीबी माना जाता है। टिकट फाइनल होने से पहले ही यह माना जा रहा था कि गामा को ही मेयर पद के लिए प्रत्याशी बनाया जाएगा। गामा भी अपनी दावेदारी और टिकट मिलने को लेकर निश्चिंत रहे, जिसका प्रभाव उनके बैनरों में भी साफ नजर आता रहा।
यहां मुकाबला भी कड़ा है। कांग्रेस प्रत्याशी दिनेश अग्रवाल अपनी व्यक्तिगत पहचान से तो आगे हैं ही, उनका राजनीतिक कद भी गामा से कई बड़ा है। पूर्व विधायक और मंत्री भी रह चुके हैं। उनके पास लोगों को बताने के लिए बहुत कुछ है। दूसरा यह कि, कांग्रेस भी यहां पूरा जोर लगाने की तैयारी पहले ही कर चुकी है। पार्टी के बड़े नेता उनके नाम पर एकजुट होकर चुनावी रण को जीतने उतरे हैं।
जहां तक हल्द्वानी की बात है, प्रदेश में देहरादून के बाद हल्द्वानी दूसरा सबसे बड़ा नगर निगम है। इंदिरा हृदयेश ने अपने बेटे सुमित हृदयेश को नगर निगम मेयर पद पर चुनावी रण में उतारने के साथ ही एक हिसाब से यह भी तय कर दिया है कि उनकी राजनीति विरासत सुमित हृदयेश ही संभालेंगे।हालांकि, इसको लेकर स्थिति कुछ हद तक पहले ही साफ थी, लेकिन अब पूरी तरह साफ हो गई है। लेकिन, इस चुनाव में सुमित हृदयेश से कहीं अधिक उनकी मां नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश की राजनीतिक प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।
उनके साथ इस चुनाव में दो बातें हैं। पहले यह कि इंदिरा हृदयेश को स्वीकार करने में कांग्रेस और कांग्रेस के बाहर के लोगों को ज्यादा समस्या नहीं है, लेकिन सुमित को लेकर लोगों में नाराजगी साफ नजर आती है। सुमित हृदयेश के पास युवाओं की टीम भले ही है, लेकिन उस टीम में खुद उनके अलावा ऐसे चेहरे कम ही हैं, जो चुनाव जितवाने का दम रखते हों। दीपक बलूटिया और ललित जोशी को छोड़ दें तो उनके पास कोई दूसरा चेहरा जनता को प्रभावित करने वाला नजर नहीं आता।
सुमित को इस बात का लाभ मिल सकता है कि, भाजपा प्रत्याशी जोगेेंद्र रौतेला के कार्यकाल को लेकर लोगों के मन में रौतेला के लिए एंटी इंकम्बेंसी का भाव है। उनको लेकर लोगों का नजरिया आज भी साफ नहीं है। इसका सुमित को लाभ मिल सकता है। हालांकि सुमित को भाजपा से नाराज चल रहे उन लोगों को अपने पक्ष में करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी, जो भाजपा या कांग्रेस में से किसी को भी अपना वोट कर सकते हैं। दूसरी बड़ी चुनौती सुमित के लिए मुस्लिम वोटरों को अपने पाले में करने की है। सपा के शोएब अहमद आसानी से अपने वोट बैंक को खिसकने नहीं देंगे। कुल मिलाकर देखा जाए तो सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को देहरादून और नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश को हल्द्वानी में अपनी प्रतिष्ठा को बचाने के लिए सारे राजनीतिक दांव लगाने होंगे।