देहरादून: हाल में ही एनएच-74 मामले में फंसे दो अधिकारियों का मामला अब नया मोड़ लेता नजर आ रहा है। प्रदेश में 40 से ज्यादा आईएएस अधिकारियों के भ्रष्टाचार में नाम सामने आने के बाद फंसे हुए कुछ अधिकारियों को बचाने के लिए कसरत शुरू कर दी गई है। आईएएस एसोसिएशन ने मामले में अपर मुख्य सचिव कार्मिक राधा रतूड़ी और अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश से मुलाकात भी की। माना जा रहा है कि, अधिकारियों ने मुख्यमंत्री से मिलने का समय भी मांगा है। अब देखना यह होगा कि मुख्यमंत्री इन अधिकारियों के सामने जीरो बनते हैं या फिर हीरो बनकर सामने आएंगे।
एनएच-74 मामले में एसआईटी पहले ही दो आईएएस अधिकारियों से पूछताछ कर चुकी है। इससे आईएएस अधिकारियों में खासी खलबली मची हुई है। साथ ही एमडीडीए में होने वाले 2 साल के रुटीन आॅडिट के आदेश में पांच साल की स्पेशल आॅडिट कराने की बात होने से भी आईएएस एसोसिएशन नाराज बताई जा रही है। आईएएस एसोसिएशन ने जांच में नियमों की अनदेखी की भी बात कही है।
पूरे मामले में अब गेंद सरकार के पाले में हैं। सरकार जीरो टाॅलरेंस की अपनी नीति पर जमी रहती है या फिर अधिकारियों के दबाव में आकर चांज को बीच में ही ठंडे बस्ते में डाल देगी। सरकार को यह तय करना होगा कि उसको क्या कदम उठाने हैं। अगर सरकार जांच को ठंडे बस्ते में डालती है, तो इससे सरकार की किरकिरी होनी तय है। जीरो टाॅलरेंस के नाम पर जो माइलेज सरकार ने लिया है, वह भी खिसक सकता है।
बहरहाल ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। पहले भी आईएएस एसोसिएशन भ्रष्ट अधिकारियों को जांच से बचाने के लिए इस तरह की रणनीति आजमा चुकी है। इस बार भी आईएएस एसोसिएशन कुछ उसी जुगत में है। कुल मिलाकर गेंद सीधे तौर पर सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के पाले में है। सरकार के कई मंत्री खुलकर भले ही सामने न आएं, लेकिन आईएएस अधिकारियों को बचाना चाहते हैं। हालांकि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत साफ कर चुके हैं कि वे अपनी जीरो टॉलरेंस की नीति पर कायम हैं और जो भी दोषी होगा उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।