नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के मुख्य स्थायी अधिवक्ता परेश त्रिपाठी को कोर्ट की अवमानना करने पर कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट एक्ट किये जाने पर रजिस्ट्री को आदेश दिया है कि वह मुख्य स्थायी अधिवक्ता परेश त्रिपाठी को कोर्ट की अवमानना करने का नोटिस जारी करे। नोटिस में यह कहा गया है की उन्हें अदालत की अवमानना करने पर दोषी क्यों नहीं ठहराया जाए। कोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए 14 मई की तिथि नियत की है।
न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की एकलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। मामले के अनुसार त्रिलोक सिंह कठैत व अन्य ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि वह शिक्षा विभाग में 1995 से कार्यरत थे लेकिन उन्हें मई 2011 से वेतन नहीं मिला। पूर्व में कोर्ट ने आदेश पारित कर याचिकाकर्ताओ को 50 प्रतिशत एरियर के साथ वेतन देने के निर्देश दिए थे। लेकिन कोर्ट के आदेशों का पालन न करने पर याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उन्हें न वेतन मिल रहा है और न ही एरियर दिया जा रहा है।
इस प्रकरण पर कोर्ट ने डायरेक्टर इंटरमीडिएट एजुकेशन उत्तराखंड आरके कुंवर व चीफ एजुकेशन अफसर जिला रुद्रप्रयाग को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में उपस्थित होने के निर्देश दिए थे। कोर्ट के संज्ञान में आया कि सीईओ रुद्रप्रयाग ने प्रकरण में झूठा शपथपत्र दिया है। जब मुख्य स्थायी अधिवक्ता परेश त्रिपाठी को इसे स्पष्ट करने के लिए बुलाया गया तो उन्होंने कहा कि इसमें कोई गलती नहीं हुई है और न ही कोर्ट को गुमराह किया गया। उसके बाद जब दोबारा केस सुनवाई के लिए आया तब इस दौरान जब मुख्य स्थायी अधिवक्ता से न्यायाधीश लोक पाल सिंह ने महा अधिवक्ता के उपस्थित नहीं होने का कारण जानना चाहा। उसके जवाब में मुख्य स्थायी अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि महा अधिवक्ता बीमार है और कोर्ट परिसर में मौजूद नहीं हैं, जबकि वे वहीं कोर्ट परिसर में ही मौजूद थे।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि वाद धारक और स्थायी अधिवक्ता ही महत्वपूर्ण मामलों में उपस्थित हो रहे हैं जबकि बड़े पदों पर नियुक्त उप महा अधिवक्ताओं का काम सिर्फ मामलों में तिथि लाने तक सीमित है जो कि सरकार के लिये बड़ी कठोर टिपणी मानी जा सकती है क्योंकि सरकार इन उप महाअधिवक्ताओं पर महीने में लाखों रूपए खरच कर रही है।
प्रदेश में ऐसा मामला पहली बार सामने आया है, जबकि किसी मुख्य स्थाई अधिवक्ता को कोर्ट ने उनके खिलाफ कार्रवाई करने का नोटिस दिया हो। इससे एक बाद तो साफ है कि, कोर्ट से झूठ बोलना कितना महंगा पड़ सकता है। यदि मामले में कोर्ट का रुख आगे भी सख्त रहता है, तो चीफ स्टैंडिंग कॉउन्सिल को अपनी कुर्सी भी गंवानी पड़ सकती है।