रुद्रप्रयाग: विकास के नाम पर किस कदर राजनीति होती है इसका उदाहरण है रुद्रप्रयाग जनपद। रुद्रप्रयाग के विकासखण्ड जखोली में स्वीकृत पर्वतीय कृषि महाविद्यालय छात्रों के लिए कृषि का केन्द्र तो बन न सका बल्कि पशुओं की ऐशगाह जरुर बन गया है। चिरबिटिया में 9 हैक्टेयर भूमि पर करीब 6 करोड रुपये खर्च कर दिये गये हैं मगर अभी तक ना तो महाविद्यालय का भवन तैयार हो पाया और ना ही यहां कक्षाओं का संचालन हो पा रहा है।
वर्ष 2013 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार में रुद्रप्रयाग विधायक व कृषि मंत्री रहे हरक सिंह रावत ने इस पर्वतीय कृषि महाविद्यालय की धोषणा करवाई थी। और वर्ष 2015 में इसका निर्माण कार्य भी शुरु कर दिया गया था। उद्यान विभाग व स्थानीय ग्रामीणों की इस भूमि पर भवन निर्माण कर माली ट्रेड की कक्षाएं भी शुरु करवायी गयी थी मगर शैक्षिक गतिविधियां ठीक तरह से न चलने के कारण छात्रों को अन्यत्र मेहलचौंरी महाविद्यालय में स्थानांतरित कर दिया गया। माविद्यालय को स्थानीय जनता में काफी खुशी का माहौल हुआ था कि अब यहां के छात्रों को भी कृषीकरण के क्षेत्र में नये आयाम छूने को मिलेंगे। यहां कृषि का हब तो तैयार नहीं हो पाया मगर आवारा पशुओं का अड्डा जरुर तैयार हुआ।
महाविद्यालय के भवन व छात्रावास निर्माण के लिए पूर्व में 6 करोड रुपये स्वीकृत हुए थे, जिस पर कार्यदायी संस्था ने भवन निर्माण के लिए सामाग्री भी इकट्ठा की थी और सामाग्री को जोडने का कार्य भी शुरु कर दिया था, कार्यदायी संस्था ने भवन को पूर्ण करने के लिए 2 करोड रुपये का अतिरिक्त बजटा भी मांगा था मगर धनराशि न मिलने के कारण निर्माण कार्य बन्द हो गया और अब स्थिति यह है कि महाविद्यालय परिसर अध्यन का केन्द्र कम चारागाह ज्यादा दिख रहा है, स्थानीय विधायक का कहना है कि चिरबिटिया में महाविद्यालय खुला ही नहीं था तो बन्द होने का कोई मतलब ही नहीं है। जनपद पूरी तरह से जैविक जनपद है और इस दिशा में पूरे प्रयास किये जायेंगे कि महाविद्यालय का निर्माण कार्य जल्दी से शुरु हो जिससे यहां कक्षाओं का संचालन हो सके।
पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में मंत्री रहते हुए हरक सिंह रावत ने सैनिक स्कूल व पर्वतीय कृषि महाविद्यालय जैसे बडे शैक्षणिक केन्द्रों की सौगात दी थी मगर भाजपा सरकार आते ही ये दोनों बडे प्रोजेक्ट बन्द हो गये हैं हालांकि हरक रावत मौजूदा सरकार मैं भी मंत्री हैं, ऐसे में अपनी ही घोषणाओं को अम्लीजामा नहीं पहुंचा पा रहे हैं, जिससे ग्रामीणों में शंसय बना हुआ है कि जब सरकार के मंत्री अपनी ही घोषणा को पूरी नहीं करवा पा रहे हैं, तो ऐसे में जनता अब किसके सामने अपना दुखडा सुनाये। साफ है कि मौजूदा सरकार पिछली सरकार की घोषणाओं को ठण्डे बस्ते में डाले हुए है और विकास के नाम पर राजनीति का इससे बडा उदाहरण कोई नहीं हो सकता।