सेंट्रल बैंक की स्वायत्ता को नजरअंदाज करना विनाशकारी हो सकता है : डिप्टी गर्वनर RBI

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मुंबई : रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) और सरकार के बीच भी शायद कुछ ठीक नहीं चल रहा है। मुंबई में एडी श्रॉफ मेमोरियल व्याख्यान में आरबीआई के डिप्टी गर्वनर डॉ. विरल वी. आचार्य ने स्वायत्त संस्थानों की स्वायत्ता पर जोर देते हुए सरकार को चेताया। विरल आचार्य ने कहा कि जो सरकारें केंद्रीय बैंक की स्वतंत्रता का सम्मान नहीं करती हैं, उन्हें वित्तीय बाजार की नाराजगी सहनी पड़ती है। डिप्टी गवर्नर ने कहा कि जो सरकार केंद्रीय बैंक को आजादी से काम करने देती हैं, उस सरकार को कम लागत पर उधारी और अंतरराष्ट्रीय निवेशकों का प्यार मिलता है।

उन्होंने कहा कि ऐसी सरकार का कार्यकाल भी लंबा रहता है. सेंट्रल बैंक की स्वायत्ता को नजरअंदाज करना विनाशकारी हो सकता है। इससे कैपिटल मार्केट में भरोसे का संकट पैदा हो सकता है। फाइनेंशियल और मैक्रोइकॉनमिक स्टेबिलिटी के लिए यह जरूरी है कि रिजर्व बैंक की स्वायत्ता को बढ़ाया जाए। आरबीआई सरकार का सच्चा दोस्त है, जो सरकार को अप्रिय लेकिन क्रूर ईमानदार सच्चाई बताती है। सरकार जब केंद्रीय बैंक को आजादी से काम करने देती है, उस सरकार को कम लागत पर उधारी और इंटरनेशनल निवेशकों का प्यार मिलता है। ऐसी सरकार का कार्यकाल भी लंबा रहता है।

आरबीआई ने मौद्रिक नीति ढांचे से संबंधित मामलों में अच्छी प्रगति की है. जीएसटी और दिवालिया संहिता में भी आरबीआई अच्छा रहा है। लेकिन रिजर्व बैंक की स्वायत्तता बरकरार रखने में कुछ जरूरी क्षेत्र हैं जो अभी कमजोर हैं। आरबीआई के पास सरकारी बैंकों पर कार्रवाई करने के सीमित अधिकार हैं। डिप्टी गर्वनर ने अपने भाषण में फाइनेंशियल और मैक्रोइकॉनमिक स्टेबिलिटी के लिए रिजर्व बैंक की स्वायत्ता बढ़ाए जाने की मांग की।

साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि केंद्रीय बैंक को पब्लिक सेक्टर बैंकों पर और ज्यादा रेग्युलेटरी और सुपरवाइजरी पावर दी जाए. डिप्टी गवर्नर का ये बयान तब आया है, जब केंद्र सरकार देश में पेमेंट सिस्टम के लिए एक अलग रेग्युलेटर की संभावना पर विचार कर रही है। फिलहाल अपने बैंकिंग रेग्युलेशंस की जिम्मेदारी के तहत आरबीआई पेमेंट सिस्टम का काम भी देख रहा है।

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