देहरादून: उत्तराखंड मित्र पुलिस का एक बडा करानामा सामने आया है, जी हां मित्र पुलिस ने अपने कारनामे से उत्तराखंड परिवहन विभाग को ऐसा चूना लगाया है, जिसकी भनक परिवहन विभाग को दूर-दूर तक नहीं है। आरटीआई के जरिए पुलिस विभाग के इस कारनामे का खुलासा हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट की गाईड लाईन की अवहेलना
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के गाइड लाईन के अनुसार ओवर लोडिंग के तहत पुलिस के द्धारा जो चालन काटे जाएंगे वे चालन परिवहन विभाग को भेजे जाएंगे, जिस पर पूरी कार्रवाई परिवहन विभाग खुद करेगा। कार्रवाई के तहत अर्थ दंण्ड के साथ परिवहन विभाग ओवर लोडिंग से क्या कुछ खतरे उत्पन्न होते हैं, इसकी जानकरी चालन भुगतने वाले व्यक्ति को बताता है। मतलब साफ है कि ओवर लोडिंग में पुलिस जो भी चालन काटेगी, उसे सीधे परिवहन विभाग को भेजा जाएगा, लेकिन आरटीआई के तहत जो जानकारी मिली है उसमें ऐसा नही हुआ है।
क्या है पूरा मामला
आरटीआई कार्यकर्ता विजय वर्धन डंडरियाल ने पुलिस विभाग और देहरादून आरटीओ ऑफिस में ओवर लोडिंग के तहत काटे गए चालनों का ब्योरा मांगा तो, आरटीआई में दो विभागों में मिली जानकारी के आंकणों का आंकलन करने के बाद आरटीआई कार्यकर्ता खुद ही हैरत में पड गए कि, पुलिस के द्धारा ये क्या किया जा रहा है।
आरटीआई कार्यकर्ता द्धारा 30 नवम्बर 2015 से 16 जनवरी 2018 तक पुलिस के द्धारा काटे गए ओवर लोडिंग चालनों की संख्या मांगी गई। साथ ही उन्होनें आरटीओ ऑफिस से ओवर लोडिंग के तहत पुलिस द्धारा भेजे गए चालनों की संख्या मांगी गई, जिसे समान होना चाहिए था लेकिन उसमे बडा अंतर था।
पुलिस विभाग के द्धारा देहरादून में 30 नवम्बर 2015 से 16 जनवरी 2018 तक पुलिस ने ओवर लोडिंग में कुल 2,433 चालन काटे, जबकि आरटीओ ऑफिस महज पुलिस विभाग के द्धारा 9,79 चालन ही भेजे गए। जिससे पुलिस महकमे पर सवाल उठ रहे हैं कि, पुलिस विभाग के द्धारा 1,474 चालन कहाँ भेज दिए गए जो आरटीओ ऑफिस भेजे जाने थे।
चालनों के जरिए खेला गया बडा खेल
दून पुलिस के द्धारा 1,474 चालन जो आरटीओ ऑफिस भेजे जाने थे और उन चालन के बदले परिवहन विभाग को कॉफी राजस्व मिलना था, वो मिला नहीं। ऐसे में पुलिस पर सवाल उठ रहे हैं कि, उन चालनों का पैसा पुलिस के द्धारा कहां गायब कर दिया गया है।
जांच की मांग
आरटीआई के जरिए पूरे मामले को उजागर करने वाले आरटीआई कार्यकर्ता विजय वर्धन डंडरियाल पूरे मामले की निष्पक्ष जांच की मांग सरकार से कर रहे हैं, ताकि पुलिस के द्धारा चालान को लेकर जो खेल खेला जा रहा है उसका पर्दाफाश हो सके। ऐसे में देखना ये होगा कि जब मामला गंभीर प्रतीत हो रहा है तो, सरकार के साथ पुलिस महकमा और परिवहन विभाग इस पर क्या रूख अपनाते हैं।