एक बार फिर से पाकिस्तान का दोहरा चरित्र सामने आया है। एक तरफ जहां उसने करतारपुर कॉरिडोर को खोल दिया है। वहीं अपने देश में स्थित गुरुद्वारे में भारतीय अधिकारियों को प्रवेश करने से रोक दिया। पाक ने भारतीय उच्चायोग के दो अधिकारियों को गुरुद्वारे में प्रवेश करने से रोक दिया। इन भारतीय अधिकारियों के नाम- अरनजीत सिंह और सुनील कुमार हैं। प्रशासन इस बात से नाराज है कि भारत में एक ऐसी फिल्म दिखाई गई है जिससे कि सिख समुदाय की भावनाएं आहत हुई हैं। दोनों अधिकारियों को बुधवार की रात गुरुद्वारा ननकाना साहिब और गुरुवार को गुरुद्वारा सच्चा सौदा में प्रवेश करने से रोक दिया गया। यह दोनों ही गुरुद्वारे पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित हैं।
गुरुद्वारा प्रशासन ने इन दोनों को प्रवेश करने से इसलिए रोक दिया क्योंकि भारतीय सरकार ने नानक शाह फकीर फिल्म की स्क्रिनिंग को इजाजत देकर सिखों की भावनाएं आहत की हैं। विस्थापित लोगों की संपत्ति से संबंधित ईटीपीबी बोर्ड का कहना है कि भारतीय अधिकारियों को पाकिस्तान गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (पीजीपीसी) के अधिकारियों ने रोका था। अधिकारी एक वीडियों में कहते हुए सुने जा सकते हैं, ‘गुरु के घर में प्रवेश करने से किसी सिख को रोका नहीं जाता। हम हैरान हैं कि हमें क्यों रोका जा रहा है?’
हालांकि पीजीपीसी अधिकारी कहते रहे कि उनका परिसर छोड़कर चले जाना ही बेहतर होगा। ईटीपीबी बोर्ड के सचिव तारिक वजीर ने कहा, ‘चूंकि फिल्म की स्क्रिनिंग की गई है इसलिए हमने भारतीय उच्चायोग को पत्र लिखकर कहा था कि वे अपने अधिकारियों को किसी भी गुरुद्वारे में न भेजें।’ उनका कहना है कि भारतीय अधिकारियों ने उनकी सलाह को नजरअंदाज किया। इससे पहले जून में भी भारतीय उच्चायुक्त अजय बिसारिया और उनकी पत्नी को रावलपिंडी के हसन अब्दल स्थित गुरुद्वारा पंजा साहिब में प्रवेश करने से रोका गया था।
विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान दूतावास के उप उच्चायुक्त सैयद हैदर शाह को बुलाकर पाकिस्तान सरकार के खिलाफ कड़ा विरोध विरोध दर्ज कराया। सरकार का कहना है कि दोनों ही अधिकारियों को पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय से यात्रा की मंजूरी मिली थी। इसके बावजूद दूतावास के अधिकारियों को 21 और 22 नवंबर को गुरुद्वारा ननकाना साहिब और गुरुद्वारा सच्चा सौदै में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी गई। जिसके परिणामस्वरुप दोनों अधिकारियों को भारतीय श्रद्धालुओं के प्रति अपने राजनयिक कर्तव्यों के बिना ही इस्लामाबाद वापस लौटना पड़ा।