रुद्रप्रयाग: जनपद के स्यूपुरी गांव बिजरोणा तोक निवासी तत्कालीन मालगुजार ठाकुर स्वर्गीय धन सिंह बर्तवाल द्वारा लिखित आरती को मंदिर समिति ने अंगीकृत कर दिया है। 138 साल के बाद आखिरकार भगवान बद्री नारायण की आरती की मूल पाण्डुलिपियां भगवान के भण्डार में पहुंच गयी हैं। साथ ही आरती को लेकर पूर्व में चल रहे विरोधाभाश पर भी विराम लग गया है। जल्दी ही मंदिर समिति, बोर्ड की बैठक में पाण्डुलिपियों को प्रस्तुत करेगी और उसके पश्चात भगवान की मौजूदा समय में गायी जाने वाली आरती में कुछ बदलाव की भी संभावना है।
रविवार को स्यूपुरी गांव में बडा धार्मिक आयोजन किया गया, आयोजन में श्रीबद्री-केदार मंदिर समिति के मुख्य कार्याधिकारी, भगवान बद्री नारायण के मुख्य पुजारी व वेदपाठियों द्वारा दुर्लब पाण्डुलिपियों का शुद्दिकरण कर तिलक पूजन किया गया और पाण्डुलिपियों को अंगीकृत किया गया। 138 वर्ष पूर्व विजरौणा तोक के तत्कालीन मालगुजार स्वर्गीय धन सिंह बर्त्वाल द्वारा ये पाण्डुलिपियां लिखी गयी थी। जिनको उनके परपोते महेन्द्र बर्त्वाल द्वारा संरक्षित किया गया था और दावा किया गया था कि, भगवान बद्रीनाथ की आरती बदरुद्वीन शाह द्वारा नहीं लिखी गयी थी और जिस पर मंदिर समिति, जिला प्रशासन व यूसेक द्वारा भी गहन पडताल की और पाण्डुलिपियों को सही पाया।
क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता व पाण्डुलिपि के बारे में ऐतिहासिक तथ्य जुटाने वाले गम्भीर सिंह बिष्ट ने भी इसे बडी उपलब्धि बताया।
यूसेक के डायरेक्टर प्रो. एमपीएस बिष्ट ने कहा कि, प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यक्ता नहीं है और सभी स्तरों पर जांच के बाद कहा जा सकता है कि मौजूदा पाण्डुलिपियां ही वास्तविक हैं। साथ ही नेशनल फिजिकल रिर्सच सेन्टर द्वारा भी पाण्डुलिपियों का परीक्षण करवाया जायेगा।
मंदिर समिति के मुख्य कार्याधिकारी बीडी सिंह ने कहा कि, सभी तथ्यों के आधार पर पाण्डुलिपि के वास्तविक होने के प्रमाण हैं और जल्दी ही मंदिर समिति की बैठक में पाण्डुलिपियों को रखा जायेगा। साथ ही पाण्डुलिपि को भगवान बद्रीनारायण की फोटो गैलरी में स्थान दिया जायेगा।
बद्रीनाथ के मुख्य पुजारी भाष्कर डिमरी ने कहा कि, वर्षों बाद हमने अपनी ऐतिहासिक धरोहर को पाया है और सभी मिथकों पर विराम लगा है। उन्होंने कहा कि पाण्डुलिपि करोडों हिन्दुओं की धरोहर है और उसके प्रमाण सामने हैं।
वहीं जिलाधिकारी ने कहा कि, यह जनपद के लिए गौरव का क्षण है और भगवान की आरती के संरक्षण को लेकर यथा संभव प्रयास किये जायेंगे।
पूर्व में नन्दप्रयाग निवासी बदरुद्वीन को भगवान की आरती का लेखक माना जाता था, मगर लिखित प्रमाण कुछ भी नहीं थे। महज आपसी बोलचाल के आधार पर ही उन्हें आरती का रचियता माना जाता था। लेकिन अब 138 साल के बाद आरती से जुडी मूल पाण्डुलिपि मिल गयी हैं जिसको कि यूसेक, जिला प्रशासन व बद्रीकेदार मंदिर समिति द्वारा स्वीकार कर लिया गया है। जिसके आधार पर अब साबित हो गया है कि बद्रीनारायण की मूल आरती रुद्रप्रयाग के स्यूपुरी निवासी ठाकुर स्वर्गीय धन सिंह बर्त्वाल ने ही लिखी है।