उत्तरकाशीः उत्तरकाशी का जोशियाड़ा पुल कभी शान से बड़े से बड़े वाहन का वजन सहने के लिए तैयार रहता था। आपदाएं इस पुल को डिगा नहीं पाई। आपदा आई और टकरा कर चली गई। बेदम हो चुके सिस्टम की बेरुखी से यह पुल अब अंतिम सांसे गिन रहा है। तीन बाढ़ों के वेग और मलवे के थपेड़ों को सह चुके पुल की बुनियाद को 1991 का भयंकर भूकंप भी नहीं हिला पाया था, लेकिन जंग लग चुके सिस्टम की लापरवाही के चलते पुल अब पूरी तरह जर्जर हो चला है।
जिस पुल पर कभी वाहनों के चलने से आवाज तक नहीं आती थी। उस पुल की जर्जर हो चुकी लोहे की रौड़, टूटे स्लैबों से बर्बादी का संगीत सुनाई पड़ता है। इन चादरों से आती आवाजें साफ बयां कर रही हैं कि अब वो बदहाल हो चुका है। जर्जर हो चुका है। सरकारें आई, प्रशासनिक अधिकारी आए। विधायक बने…सबने कई-कई बार पुल का निरीक्षण किया। पुल को बचाने के लिए कुछ स्लैब भी डाले गए, लेकिन स्लैब टिक नहीं पाए।
पुल की स्थिति नाजुक है। खतरे की संभावना के बावजूद कोई कुछ करने को तैयार नहीं है। विभागीय अधिकारियों ने केवल दिखावे के लिए पहरेदारी और अस्सी गंगा घाटी के टूटे पुल की फोटो जरूर चस्पा कर दी है। पुलिस दिन में तो पहरा दे रही है, लेकिन रात को पुल से ओवरलोड वाहन धड़ल्ले से पुल पर दौड़ते नजर आते हैं। यहां भी सिस्टम पर ही सवाल खड़े होते हैं कि आखिर ऐसा क्या कि दिन में लगा पहरा रात को हटा लिया जाता है या फिर पहरेदारी ही सही ढंग से नहीं हो रही।
पुल का इतिहास
1964 मे बने इस पुल की उम्र 54 वर्ष हो चुकी है। 1978, 2012, 2013 की बाढ़,1991 का भूकंप पुल झेल चुका है। मनेरी- भाली बांध यह पुल माल ढो कर बना चुका है। नदी पार के नजदीक से लेकर दूरस्थ तक के सरकारी, गैर सरकारी, निजी कंस्ट्रक्शन यह पुल करा चुका है और अब भी करा रहा है। एक बहुत बडी आबादी की लाइफ लाइन और चार धाम यात्रा बदरीनाथ और केदारनाथ धाम को इसी पुल से जुड़ी है।
1964 मे बने इस पुल की उम्र 54 वर्ष हो चुकी है। 1978, 2012, 2013 की बाढ़,1991 का भूकंप पुल झेल चुका है। मनेरी- भाली बांध यह पुल माल ढो कर बना चुका है। नदी पार के नजदीक से लेकर दूरस्थ तक के सरकारी, गैर सरकारी, निजी कंस्ट्रक्शन यह पुल करा चुका है और अब भी करा रहा है। एक बहुत बडी आबादी की लाइफ लाइन और चार धाम यात्रा बदरीनाथ और केदारनाथ धाम को इसी पुल से जुड़ी है।
1964 के बाद पुल के ऊपर जितनी बार स्लैब डाले गए वे टिके नहीं, अलबत्ता 1964 के पड़े सीमेंट के टूटे-फूटे स्लैब पर ही आवाजाही हो रही है। पुल की डेकिंग कमजोर है। 16 टन से ज्यादा पुल की लोड सहने की ताकत नहीं है, इसलिए अस्सी गंगा के धरासायी पुल का फोटो इस मोटर पुल के नजदीक चस्पा कर आगाह किया गया है कि खतरा हो सकता है।
1964 में इस पुल के साथ के बने एक भी पुल नहीं बचा है, लेकिन यह पुल जर्जर हालत में भी वाहनों का बोझ ढो रहा है। जोशियाड़ा मोटर पुल का विकल्प अब तक देख लिया जाना चाहिए था, लेकिन बगैर हादसा हुए सबक लेना सिस्टम में नहीं है। जब कोई हादसा होगा या पुल टूट कर गिर जाएगा। उसके के बाद ही शासन-प्रशासन हरकत में आएगा।