रूद्रप्रयाग: पहाड़ों में हो रहे जलवायु परिवर्तन ने वैज्ञानिकों की चिंता बढा दी है। समुद्रतल से आठ से नौ हजार की फीट की उंचाई पर पाया जाने वाला काफल फल तय समय से पहले ही पकने को तैयार हो गया है। तो राज्य पुष्प बुरांष दिसम्बर के महीने से ही कई स्थानों पर फूलने लग गया है जो कि पर्यावरणीय दृष्टि से चिंता का विषय है।
रूद्रप्रयाग जनपद के विकास खण्ड़ अगस्त्यमुनि के बच्छणस्यॅू के बंगोली के जंगलों में इन दिनों काफल से लदे पेड़ और बुरांष के पेड़ों पर फूल खिले नजर आ रहे हैं। अकसर मार्च व अप्रैल माह में ये प्रजातियां दिखती हैं मगर लम्बे समय से हो रहे जलवायु परिर्वतन के कारण इन प्रजातियों के पकने का समय भी बदलता जा रहा है। ग्रामीणों की मानें तो कई पेडों पर ये फल व फूल दिसम्बर के महीने से ही दिखने लग गये थे।
पर्यावरणविद् जगत सिंह चौधरी मानतें है कि विकास की इस आपाधापी में जनमानस ने जलवायु की ओर ध्यान देना ही छोड़ दिया है। जिसका परिणाम है कि लगातार मौसम परिवर्तित होता जा रहा है और उसका नतीजा है कि दिसम्बर जनवरी के महीनों में बुरांष व काफल देखने को मिल रहे हैं। अगर समय रहते इस पर ठोस कदम नहीं उठाया गया तो आगे दो महीने बाद इसके परिणाम देखने को मिलेगें। जब पानी के सारे स्रोत सूख जायेगें। हिमालय में ग्लेशियर के पिघलने से नदीयों का जलस्तर बढ़ जायेगा। जनवरी माह तक उच्च हिमालयी क्षेत्रों के कई हिस्से बर्फ से ढके जाते थे। मगर अब यह देखने को नहीं मिल रहा है जो कि गम्भीर चिन्ता का विषय है।
अवैज्ञानिक तरीके से बड रही मानवीय हलचलों से आगाह करने के लिए प्रक्रिति ने भी संकेत देने शुरू कर दिये हैं। अगर समय रहते इस दिशा में सोचा नहीं जाता है तो 2013 की केदारनाथ त्रासदी जैसे मंजर फिर से प्रकृति दोहरा सकती है। ग्लोबल वार्मिंग भले ही आज पूरी दुनियां का विषय है मगर यह सिर्फ सेमिनार तक ही सीमित हो कर रह गया है।