देहरादून: पिछले दिनों हाईकोर्ट से अवैध बस्तियों को ध्वस्त करने के आदेश के बाद उनको बचाने के लिए सरकार के मंत्री से लेकर विधायक तक आंदोलनकारी बन गए थे, जिसके पीछे राजनैतिक स्वार्थ साफ़ देखा जा सकता था। क्योंकि इन अवैध बस्तियों को राजनितिक पार्टियां अपने लिए वोट की रूप में देखते हैं। इसी क्रम में सरकार द्वारा न्यायालय के आदेश को प्रभावहीन करने के लिए आनन-फानन में वोटों वाला अध्यादेश लाया गया। लेकिन, वही सरकार अब कहीं नजर नहीं आ रही जो विदेशों में उत्तराखंड का पर्यटन बढ़ाने के लिए सैर करने जाती है। वो सरकार जो कहती है कि पर्यटन हमारे प्रदेश की रीढ़ है। वो सरकार जो प्रदेश के 13 जिलों में 13 नए डेस्टिनेशन बनाने के दावे करती है। पर्यटन, राजस्व का मुख्य स्रोत होने के बावजूद, सरकार इसके प्रति उदासीन है। अवैध बस्तियों के लिए अध्यादेश लाने वाली सरकार पर्यटन के मसले पर नजर आना तो दूर, कुछ कहते हुए भी नहीं सुनाई दे रही।
दरअसल, हाईकोर्ट ने बुग्यालों में रात्रि विश्राम पर रोक के बाद पर्यटन क्षेत्रों में पर्यटकों और पवर्ताराहियों से गुलजार रहने वाले ग्लेशियर और बुग्याल सूने हो गए हैं। इस आदेश से हजारों लोग एक झटके में बेरोजगार हो गए। देश और विदेश से आए पवर्तारोही परेशान हैं। पोर्टर का काम करने वाले लोग बेरोजगार हो गए हैं। बावजूद इसके सरकार कुछ करने को तैयार नहीं है।
ऐसे में सरकार को चाहिए कि, उच्च न्यायालय के आदेशों का सरकार पालन करे, लेकिन इसका उपाय भी खोजना होगा। इससे पहले रीवर राफ्टिंग पर भी सरकार की खराब नीतियों या यूं कहें कि बगैर नीतियों के लोगों को नुकसान और परेशानी उठानी पड़ी थी। इस समय जिस तरह के हालात उत्तरकाशी के हरकीदून से लेकर हर्षिल, गंगोत्री के दयारा बुग्याल, जोशीमठ, बागेश्वर, चम्पावत और पिथौरागढ़ के गुलजार रहने वाले पहाड़ों और बुग्यालों के हैं, वो किसी डरावने सपने और इमरजेंसी से कम नहीं हैं। पर्यटकों से गुलाजार रहने वाली जगहों पर सन्नाटा पसरा हुआ है। पर्यटन व्यवसाय पूरी तरह ठप हो गया है। हालांकि, हाईकोर्ट की चिंता लाजमि है। दरअसल, सरकारें कुछ करती हुई नजर नहीं आ रही हैं। सरकार को हर बार न्यायालय को ही जगाना पड़ रहा है। सरकार ने खुद से कभी इस बात की चिंता ही नहीं कि जो कदम हाईकोर्ट को उठाने पड़ रहे हैं। उनके लिए कोई नीति बनाई जाए। आखिर कब तक सरकार न्यायपालिका के जगाने के बाद ही जागेगी। सरकार को उन बातों पर ध्यान देना चाहिए, जिनको करने के कोर्ट ने निर्देश दिए हैं। हाईकोर्ट ने अपना काम कर दिया है। अब सरकार का काम शुरू होता है, लेकिन सरकार अपना काम करते हुए नजर नहीं आ रही है। पिछले कुछ दिनों में पर्यटन व्यवसायी मुख्यमंत्री से लेकर तमाम मंत्री और अधिकारियों से मिल चुके हैं। बावजूद इसके सरकार हरकत में नहीं दिख रही। रीवर राफ्टिंग को भी भारी नुकसान हुआ था। सवाल वन विभाग पर भी हैं। वन विभाग को कभी पर्यावरण की चिंता रही नहीं। वन विभाग ने कभी इस दिशा में काम ही नहीं किया। नतीजा सामने है। उच्च न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ा। आखिर ऐसी जरूरत क्यों पड़ती है कि हर बार न्यायालय को ही दखल देना पड़ता है।