देहरादून: जहाँ एक ओर कई गणमान्य लोग स्वयं के लिए अलग-अलग श्रेणी की सुरक्षा की मांग करते हैं। वहीँ इसके विपरीत राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी ने उत्तराखंड सरकार को पत्र लिख कर उन्हें उत्तराखंड भ्रमण पर दी जाने वाली वाई श्रेणी की सुरक्षा वापस करने की पेशकश की है।
आपको बता दें कि, 5 अप्रैल को उत्तराखंड सरकार द्वारा एक आदेश जारी किया गया। जिसके तहत राज्य में वीआईपी लोगों की सुरक्षा की समीक्षा की गई और इसके अंतर्गत 16 लोगों का चयन वाई श्रेणी की सुरक्षा के लिए तय किया गया। इन्हीं वीआईपी लोगों में सांसद अनिल बलूनी का नाम भी शामिल है। इसके बाद उन्होंने 17 अप्रैल को मुख्यमंत्री को एक पत्र लिख कहा कि, मुझे ज्ञात हुआ कि सरकार के आदेशानुसार मुझे भ्रमण के दौरान वाई श्रेणी की सुरक्षा एस्कॉर्ट सुविधा के साथ प्रदान करने का आदेश पारित किया है। साथ ही उन्होंने कहा है कि, मुझे राज्य भ्रमण के दौरान विशेष सुरक्षा और एस्कॉर्ट सुविधा की कोई आवश्यकता प्रतीत नहीं होती। इसलिए मुझे दी गई यह सुरक्षा आदेश को निरस्त करने का कष्ट करें। इस तरह उन्होंने अन्य वीआईपी लोगों के लिए भी एक बड़ी सीख दी है।
इन वीआईपी लोगों की सूची में धर्मगुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद, रामानंद हंस देवाचार्य, शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्वती, शंकराचार्य राजराजेश्वराश्रम, हंस फाउंडेशन के भोले जी महाराज, उनकी पत्नी मंगला माता, महामहिम राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मुख्य न्यायाधीश, न्यायाधीशगण, पूर्व मुख्यमंत्रियों के साथ-साथ योगगुरू से बड़े व्यापारी बन चुके बाबा रामदेव और रिटायर्ड जज धर्मवीर शर्मा, योगी आदित्यनाथ के माता-पिता और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट शामिल हैं।
ऐसे में अब ये सवाल उठते हैं कि, आखिर देवभूमि की शांत वादियों में इस तरह की भारी-भरकम सुरक्षा का क्या औचित्य है या यह एक वीआईपी कल्चर को बढ़ावा देना मात्र है। संसद बलूनी के सुरक्षा वापस करने के बाद अब देखना होगा कि, कितने और वीआईपी लोगों की नजर में देवभूमि सुरक्षित है।