पिथौरागढ़ से मनोज चंद की रिपोर्ट
पिथौरागढ़: उत्तराखंड का सीमांत जिला पिथौरागढ़ आज़ादी के 70 सालों बाद भी बदहाली के आँशु रोने को मजबूर है। हालात ये है कि सड़क सुविधा नहीं होने से ग्रामीण मरीजों को आज भी डोली में लादकर अस्पताल तक पहुंचा रहे है। ऐसे में डिजिटल इंडिया और मेक इन इंडिया जैसे नारे इन ग्रामीणों के लिए आज भी बेमानी ही साबित होते है।
नेपाल और चीन की सीमा से सटा सीमांत जिला आज भी विकास की एक अदद किरण की बाट जोह रहा है। यहाँ के सीमांत क्षेत्रों के लोग आज भी आदिम हालातों के जैसे जीवन जीने को मजबूर है। ज़िले के बंगापानी तहसील के गोल्फा और बोना के लोग आज भी सड़क मार्ग से वंचित हैं। ऐसे में अगर इन गांवों में कोई बीमार पड़ गया तो उसे अस्पताल तक पहुँचाने के लिए रस्सियों और लकड़ियों के बनाई गयी डोली का सहारा लिया जाता है। वो भी ऐसे कठिन रास्तों को पार कर मरीज़ को अस्पताल पहुँचाया जाता है जिनपर चलना खतरे से खाली नहीं होता। नदी के किनारे बने इन रास्तों पर कई बार तो मरीजों को ले जाते लोग खुद दुर्घटना का शिकार हो बैठते है।
ऐसा नहीं कि इन गांवों को सड़क से जोड़ने के लिए सरकार ने कोई योजना नहीं बनाई। 2016 में गांव को सड़क सुविधा देने के 12 किलोमीटर की सड़क दानीबगड़ – गोल्फा बोना मोटर मार्ग का कार्य प्रारम्भ किया गया। मगर लापरवाह नौकरशाही के चलते दो सालों में सिर्फ 100 मीटर सड़क ही कट पायी जिससे परेशान होकर गोल्फा और बोना के ग्रामीणों ने जिला मुख्यालय में प्रदर्शन किया और जिलाधिकारी को सड़क मार्ग की धीमी रफ़्तार को लेकर शिकायती पत्र दिया। जिसके बाद जिलाधिकारी ने मामले का संज्ञान लेकर सड़क निर्माण के जांच के आदेश दिए है।