उत्तरकाशी से मुकुल नौटियाल की रिपोर्ट
उत्तरकाशी : भारत में यूं तो तीन काशी प्रसिद्ध हैं। लेकिन नगर मुख्यालय उतरकाशी में स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर एक ऐसा मंदिर है जिसके दर्शनों का फल वाराणसी के काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शनों के बराबर है।
एक काशी वाराणसी वाली प्रसिद्ध है तो दो काशी उत्तराखंड में भी प्रसिद्ध है जिसमें पहला उत्तरकाशी और दूसरा गुप्तकाशी है। नगर मुख्यालय में स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर की मान्यता है कि भगवान भोलेनाथ यहां काशी विश्वनाथ के रूप में विराजमान हैं। काशी विश्वनाथ का ये मंदिर सालभर भक्तों के लिए खुला रहता है। गंगोत्री जाने से पहले बाबा विश्वनाथ के दर्शन जरूरी माने जाते हैं। मंदिर के ठीक सामने मां पार्वती त्रिशूल रूप में विराजमान हैं। कहा जाता है कि राक्षस महिषासुर का वध करने के बाद मां दुर्गा ने अपना त्रिशूल धरती पर फेंका था। ये त्रिशूल यहीं आकर गिरा था। तब से इस स्थान पर मां दुर्गा की शक्ति स्तम्भ के रूप में पूजा की जाती है।
वाराणसी की तरह घाट और मंदिर हैं यहां
कहा जाता है किसी समय में वाराणसी (काशी) को कलयुग में यवनों के संताप से पवित्रता भंग होने का श्राप मिला था। इस श्राप से व्याकुल होकर देवताओं और ऋषि-मुनियों द्वारा शिव उपासना का स्थान भगवान शंकर से पूछा तो उन्होंने बताया कि काशी सहित सब तीर्थों के साथ वह हिमालय पर निवास करेंगे। इसी आधार पर वरुणावत पर्वत पर असी और भागीरथी संगम पर देवताओं द्वारा उत्तर की काशी यानि उत्तरकाशी बसाई गई। यही कारण है कि उत्तरकाशी में वे सभी मंदिर एवं घाट स्थित हैं, जो वाराणसी में स्थित है। इनमें विश्वनाथ मंदिर, अन्नपूर्णा मंदिर, भैरव मंदिर, परशुराम मंदिर समेत मणिकर्णिका घाट एवं केदारघाट आदि शामिल हैं।