नैनीताल: राजस्थान में नाबालिग से रेप केस में आजीवन कारावास की सजा काट रहे कथित संत आशाराम बापू को उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय से भी बड़ा झटका लगा है। एकलपीठ ने ऋषिकेश स्थित वनभूमि में बने उनके आश्रम को तत्काल प्रभाव से खाली करने के वन विभाग के आदेश पर लगी रोक को हटा दिया है। इससे अब वनभूमि खाली होने की उम्मीदें बाद गई हैं ।
उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने दिसंबर 4 को जारी अपने आदेश में उच्च न्यायालय के पूर्व के स्टे आदेश को स्थगित कर दिया है। इस आदेश के बाद अब वन विभाग की भूमि को आश्रम के कब्जे से खाली कराने का रास्ता साफ हो गया है ।
मामले के अनुसार वन विभाग ने ऋषिकेश की ब्रह्मपुरी स्थित मुनि की रेती में लीज संख्या 59 से संत आसाराम बापू को 1970 में लीज समाप्त होने और दोबारा नवीकरण नहीं कराने के कारण 9 सितंबर 2013 को भूमि खाली करने का नोटिस जारी किया था। उच्च न्यायालय ने भूमि को खाली कराने के उस आदेश पर 17 सितंबर 2013 को रोक लगा दी थी। आशाराम को वन्यभूमि से बाहर करने की शिकायत स्टीफेन दुंगे ने वन विभाग से की थी। उन्होंने आशाराम की याचिका में भी इंटरवेंशन याचिका डाली थी। उन्होंने 20 वर्षों तक दी गई 1950 की ओरिजिनल लीज डीड भी कोर्ट के सम्मुख पेश की है।
अधिवक्ता कार्तिकेय हरिगुप्ता ने बताया कि उन्होंने न्यायालय को बताया कि आसाराम के आश्रम में अवैध निर्माण के कारण भी वन विभाग ने उन्हें फरवरी 2013 में नोटिस जारी किया था। अधिवक्ता ने बताया कि एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि लीज डीड 1970 में खत्म हो गई थी, जिसे नवीकरण नहीं कराया गया था । न्यायालय ने कहा है कि ये भी साफ है कि आश्रम प्रबंधन बिना वन विभाग की अनुमति के गैर वन गतिविधियां चला रहा है। इस कारण से कोर्ट के पूर्व आदेश को निरस्त किया जाता है और वन विभाग के 9 सितंबर 2013 के वनभूमि खाली करने के आदेश को प्रभावी किया जाता है।