सागर जिला मुख्यालय से महज 10 किलोमीटर दूर ग्राम कुडारी में जहां एक आदिवासी परिवार न सिर्फ बेघर होने के चलते श्मशान में रहने को मजबूर है। बल्कि दो वक्त की रोटी के लिए भी मोहताज हो गया है। वैसे तो केंद्र सरकार द्वारा प्रदेश सरकार की ओर से गरीबों के हितों के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। और यह कहा जा रहा है, कि कोई भी व्यक्ति ना तो बेघर होगा और ना ही भूखा रहेगा। लेकिन इसकी सच्चाई इन तस्वीरों साफ़ दिखाई दे रही हैं जिस तस्वीर ने मानवता को झकझोर कर रख दिया हैं।
दरअसल, रामरतन का मकान मॉनसून में हुई तेज बारिश से गिर गया था, जिसके बाद से वह अपने 9 साल के मासूम बच्चे हनुमत सहित शमशान में रहने को मजबूर है। यह पिता-पुत्र, दोनों रात में श्मशान में सोते हैं अपनी परेशानी लेकर दोनों कई दिनों से सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं। लेकिन शासन प्रशासन की तरफ से उन्हे कोई मदद नहीं मिल रही है।
दुःख की बात तो यह है की दोनों पिता-पुत्र को ग्राम पंचायत से भी किसी तरह की सहायता नहीं मिल रही है। जैसे-तैसे अपना जीवन यापन कर रहे इस परिवार की हालत इतनी बिगड़ी हुयी है। की कभी-कभी इन्हें भूखे पेट ही सोना पड़ता है, क्योंकि इनकी गृहस्थी का भी सारा सामान बारिश में बर्बाद हो गया था। रामरतन ने मकान गिरने के बाद ग्राम के सरपंच को इस संबंध में सूचित किया, लेकिन ना ही उसे घर मिला और न ही मुआवजा। आर्थिक स्थिति कमजोर होने के चलते रामरतन का मासूम बच्चा स्कूल भी पढ़ने नहीं जाता है।