भोपालः रात को लोग चैन की नींद सोए थे, कुछ लोग सोने की तैयारी में थे। लेकिन अचानक लोगों की धड़कन थमने लगीं, उल्टियां शुरू हो गई, आंखों में जलन होने लगी। इससे पहले कि लोग कुछ समझ पाते, लोग पतझड़ के मौसम में पेड़ की पत्तियों की तरह इधर-उधर गिरने लगे। किसी की समझ में नहीं आ पा रहा था कि, हो क्या रहा है। इंसानों के साथ जानवर भी बितकने लगे। और देखते ही देखते लोगों की मौतों का अंबार लग गया।
यह दर्दनाक दास्तां है भोपाल की। भोपाल गैस त्रासदी को आज 33 वर्ष हो चुके हैं, लेकिन आज भी वो जख्म हरे-भरे हैं। आज भी वो मंजर को याद कर लोग की आंखों से अपनों की मौत का दर्द छलक उठता है। जिस दर्द का बदस्तूर आज भी जारी है।
कहा जाता है कि समय के साथ दर्द के जख्म भी भर जाते हैं। लेकिन भोपाल गैस त्रासदी एक ऐसा दर्द है जिसे कोई भूल नहीं सकता। आखिर भूलें भी तो कैसे त्रासदी का जख्म आज भी लोगों के साथ जो चल रहा है।
इतने समय गुजर जाने के बाद भी भोपाल की तीन पीढ़ियां इस त्रासदी का दंश झेल रही है। यहां आज भी जो बच्चे पैदा होते हैं वो किसी न किसी रूप से अपंग होते हैं।
इस त्रासदी में मरे थे 25 हजार से अधिक और 5 लाख से ज्यादा प्रभावित:-
भोपाल शहर में 3 दिसम्बर सन् 1984 को एक भयानक औद्योगिक दुर्घटना हुई। इसे भोपाल गैस कांड, या भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जाना जाता है। भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी के कारखाने से एक जहरीली गैस का रिसाव हुआ जिससे लगभग 25,000 से अधिक लोगों की जान गई तथा अनगिनित लोग अनेक तरह की शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के भी शिकार हुए। भोपाल गैस काण्ड में मिथाइलआइसोसाइनाइट (मिक) नामक जहरीली गैस का रिसाव हुआ था। जिसका उपयोग कीटनाशक बनाने के लिए किया जाता था। मरने वालों के अनुमान पर विभिन्न स्त्रोतों की अपनी-अपनी राय होने से इसमें भिन्नता मिलती है। अन्य अनुमान बताते हैं कि 8000 लोगों की मौत तो दो सप्ताहों के अंदर हो गई थी और लगभग अन्य 8000 लोग तो रिसी हुई गैस से फैली संबंधित बीमारियों से मारे गये थे। 2006 में सरकार द्वारा दाखिल एक शपथ पत्र में माना गया था कि रिसाव से करीब 558,125 सीधे तौर पर प्रभावित हुए और आंशिक तौर पर प्रभावित होने की संख्या लगभग 38,478 थी। 3900 तो बुरी तरह प्रभावित हुए एवं पूरी तरह अपंगता के शिकार हो गये।
यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी के वोरन एंडरसन को घटना का जिम्मेदार माना गया लेकिन मात्र चार दिन के ही भीतर उसे रिहा कर दिया गया जिसके बाद वोरन सीधा अमेरिका चला गया और फिर कभी भारत नहीं आया। कम्पनी ने घटना के लिए सन 1989 में 715 करोड़ रुपए भारत सरकार को मुआवजे के लिए देकर अपना पलड़ा झाड दिया। एंडरसन का निधन दिसंबर, 2014 में हो गया था।
भारत सरकार के मुताबिक भोपाल त्रासदी में 3,500 लोग मारे गए थे, लेकिन जानकारों का कहना है कि गैस से 25,000 लोग मौत का शिकार हुए और गैस का बुरा असर त्रासदी के तीन दशकों बाद भी देखा जा सकता है।
आज 33 वर्षों के बाद भी भोपाल गैस त्रासदी में बचे हुए लोग पर्याप्त मुआवजे की प्रतीक्षा कर रहे हैं।