देहरादूनः प्रदेश के जल विद्युत निगम और यूपीसीएल के लिए बड़ी लाइनें बिछाने का काम करने वाला ऊर्जा विभाग का पिटकुल निगम पिछले तीन साल से बगैर प्रबंध निदेशक के चल रहा है। पिटकुल में प्रबंध निदेशक की नियुक्ति न होने के कारण विभाग के तमाम बड़े काम अधर में लटके पड़े हैं। इसके साथ विभाग में उजागर कई घोटालों की जांच भी प्रभावित हो रही है। वर्तमान में ऊर्जा निगम के अपर सचिव अस्थाई तौर पर पिटकुल के एमडी का कार्यभार देख रहे हैं।पिटकुल यानी पावर ट्रांसमिशन कारपोरेशन ऑफ उत्तराखंड लिमिटेड (पिटकुल) प्रदेश के जल विद्युत निगम और यूपीसीएल के लिए बड़ी लाइनें बिछाने का काम करता है और इन बिछी हुई लाइनों के रख रखाव की जिम्मेदारी भी इसी विभाग के पास है। प्रदेश में बड़ी जिम्मेदारी को देखने वाला यह विभाग पिछले तीन साल से बिना एमडी के भगवान भरोसे चल है। एसएस यादव के बाद पिटकुल को अभी तक कोई स्थाई एमडी नहीं मिल सका। पहले दो साल इस महकमे की जिम्मेदारी जल विद्युत निगम के एमडी एसएन वर्मा ने संभाली। इसके बाद करीब छह महीने इस पद पर यूपीसीएल के परियोजना अधिकारी अतुल अग्रवाल को बिठा लिया गया। अब अस्थाई तौर पर ऊर्जा विभाग के अपर सचिव रणवीर सिंह चैहान को ही प्रबंध निदेशक के पद पर तैनात कर रखा है।यह पिटकुल का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि शासन द्वारा इस पद के लिए विज्ञप्ति निकालने के बावजूद विभाग को अभी तक कोई स्थाई एमडी नहीं मिल पाया। इतना ही नहीं, जिन रणवीर सिंह चैहान को पिछले एक महीने से एमडी का चार्ज दे रखा है, उन जनाब के पास इतना समय नहीं है कि अपने इस नए विभाग के दफ्तर में भी झांक सकें। ऐसे में विभाग के कई प्रोजेक्ट्स लटके पड़े हैं। विभाग को श्रीनगर से काशीपुर तक 400 केवी की लाइन बनाना था जो अभी तक अधर में हैं। इसी तरह 132 केवी सब स्टेशन बागेश्वर में बनाना था, 220 केवी सब स्टेशन पिरान कलियर में बनना था, ये भी अधर में लटके हैं। वहीं 132 केवी सब स्टेशन लोहाघाट स्वीकृत के बाद भी काम चालू नहीं हो सका। इसके अलावा विभाग में हुए घोटालों की लंबी फेहरिस्त भी है जिन पर पिछले कई सालों से जांच चल रही है लेकिन स्थाई प्रबंध निदेशक के न होने कारण इन घोटालों की जांच भी प्रभावित हो रही है।पिटकुल में झाझरा सब स्टेशन पर लगा 80 डट का ट्रांसफार्मर घोटाला, कोबरा कम्पनी वाला श्रीनगर-काशीपुर लाइनों का घोटाला, पूर्व एम डी का सीडी काण्ड सहित आधा दर्जन घोटाले समय-समय पर सामने आए हैं। इन घोटालों से संबंधित फाइलें एमडी के न होने से बक्से में बंद पड़ी है। ऐसे में सवाल बिना मुखिया के पिटकुल जैसे भारी-भरकम महकमे के संचालन का ही नहीं है, बल्कि एक के बाद एक उजागर हुए घोटालों और लंबित पड़ी योजनाओं को लेकर भी है।