देहरादून। देहरादून नगर निगम की हेकड़ी तो देखिए, कैसे सड़क परिवहन विभाग के नियमों की धज्जियाँ उड़ा रहा है। एक नहीं, दो नहीं, पिछले पांच सालों से नियमों के साथ खिलवाड़ कर रहा है।
नगर निगम देहरादून ने करीब पांच साल पहले शहर के घरों से कूड़ा उठाने के लिए करीब 60 गाड़ियाँ मगाई थी। इन गाड़ियों में से करीब 30 गाड़ियां आज भी ऐसी हैं जिनका अभी तक पंजीकरण नहीं हुआ है। इन में से कई गाड़ियां अपनी उम्र के अंतिम सासें गिन रही हैं जिन पर आज तक कोई नंबर नहीं है। नतीजतन, इन गाड़ियों से मिलने वाली रजिस्ट्रेशन फीस और रोड टैक्स का लाखों का राजस्व निगम हजम कर चुका है।
वहीं दूसरी तरफ परिवहन विभाग शुतुरमुर्ग बना वैठा है। या यूँ कहें इतना लापरवाह कि सालों से नगर निगम बिना रजिस्ट्रेशन, अपनी गाड़ियाँ बेखौफ दून की सड़कों पर दौड़ा रहा है, लेकिन परिवहन विभाग के कर्मचारियों को अभी-तक कोई सुध नहीं है। वाहनों का रजिस्ट्रेशन न होने से जहां एक तरफ सरकार को राजस्व का चूना लगा है, वहीं दूसरी तरफ अपराधिक मामलों को भी बढ़ावा मिला है।
नगर निगम के अधिकारियों के पास इस सवाल को कोई माकूल जवाब नहीं है कि आखिर इन गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन क्यों नहीं हो पाया। अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से बचते हुए पूर्व में कूड़ा उठाने वाली प्राइवेट कम्पनी पर तौहमत मढ़ रहे हैं। उनका कहना है कि निगम की इन गाड़ियों का इस्तेमाल कथित प्राइवेट कम्पनी कर रही थी, इसलिए रजिस्ट्रेशन का काम भी उसी कम्पनी को करना चाहिए था, लेकिन अब जल्द ही इन गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन हो जायेगा।
मेयर विनोद चमोली भी इस संबंध में बचकाना बयान देते हुए कहते हैं कि महज 3 से 4 गाड़ियां ही बिना रजिस्ट्रेशन वाली हैं जिनका हो जाएगा। उनके इस वक्तव्य से जाहिर है कि उन्हें ही गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन की जानकारी नहीं है।
दूसरी ओर भले ही नगर निगम ने अपनी जिम्मेदारी नहीं समझी हो, लेकिन सवाल तो परिवहन विभाग पर भी उठना लाजमी है। जब आम आदमी की बिना नम्बर गाड़ियों पर बड़ा चालान थमाने वाले परिवहन विभाग की नजरों से आखिरकार ये गाड़ियां आज तक कैसे बची रही, यह चैंकाने वाली बात है। एआरटीओ अरविंद पांडेय का कहना है कि जब कोई विभाग के पास गाड़ियां रजिस्ट्रेशन के लिए लाएगा अथवा बिना रजिस्ट्रेशन की सड़कों पर चलती हुई पकड़ी जाएगी तो ही चालान किया जाएगा।