प्रकृति के चितेरे कवि चंद्र कुंवर बर्त्वाल को कौन नहीं जानता। छोटी सी उमर में ही चंद्र कुंवर बर्त्वाल ने प्रकृति के सौंदर्य को अपनी कविताओं के जरिए ऐसे पिरोया कि कम उम्र में ही उनके नाम की तुलना प्रख्यात कवियों से होने लगी।
क्या कुछ शिक्षा-दिक्षा और जीवन चंद्र कुंवर बर्त्वाल का रहा हैलो उत्तराखंड उनके जन्म दिवस पर उनकी जीवन प्रस्तुत कर कर रहा है एक नज़र जीवन परिचय पर……
चंद्र कुंवर बर्त्वाल का जन्म उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले के ग्राम मालकोटी, पट्टी तल्ला नागपुर में 20 अगस्त 1919 में हुआ था। बर्त्वाल की शिक्षा-दिक्षा पौड़ी, देहरादून और इलाहाबाद में हुई। सन् 1939 में उन्होंने इलाहबाद से बी.ए की परीक्षा उत्तीर्ण की और 1941 में एम.ए में लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। इसी दौरान बर्त्वाल प्रसिद्ध प्रकृति प्रेमी कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के संर्म्पक में आए। जिनसे उन्हें कवि के तौर पर प्रकृति के प्रेम को समझने की प्रेरणा मिली और उन्होंने 6 कविताएं समेत 3 दर्जन से अधिक रचनाएं कम उम्र में ही लिख दीं।
लेकिन दुर्भाग्यवश मात्र 28 साल की ही उम्र में उन्हें छय रोग ने जकड़ लिया और 1947 में उनका देहांत हो गया । आपको बता दें कि बीमारी के दौरान ही उन्होंने अपनी लेखनी को जारी रखा । इस दौरान उन्होंने हिमवंत का एक कवि नाम की एक काव्य प्रतिभा पर एक पुस्तक लिखी। उनकी काफल पाको गीति काव्य को हिंदी के श्रेष्ठ गीति के रूप में प्रेमी अभिनन्दन ग्रंथ में स्थान दिया गया। इनकी मृत्यु के बाद कवि बहुगुणा के सम्पादकत्व में नंदिनी गीति कविता प्रकाशित हुई। इसके बाद इनके गीत-माधवी, प्रणयिनी, पयस्विनि, जीतू, कंकड-पत्थर आदि नाम से प्रकाशित हुए। इनकी कविता के हर चरण सुंदर, शीतल, सरल, शांत और दर्द भरी थी जिसके कारण उनका नाम आज तक भी लोगों की जुबांन पर है।