देहरादून: दिल्ली में निर्भया कांड के बाद उत्तराखंड में निर्भया योजना शुरू की गई थी। योजना के तहत बलात्कार पीड़ित और तेजाब कांड पीड़ित महिलाओं की सुरक्षा और उनको सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए इस योजना के तहत बजट का प्रावधान किया गया। हैरानी की बात ये है कि ना तो निर्भया योजना के पास सही आंकड़े हैं और ना बजट को सही ढंग से प्रयोग किया जा रहा है। निर्भया योजना शुरू होने के बाद से अब तक पिछले पांच सालों में इस योजना का बजट लगातार घटता जा रहा है। स्थिति यह है कि बजट आधे से भी कम हो गया है।
निर्भया योजना को लेकर आरटीआई एक्टिविस्ट हेमंत गौनिया ने सूचना मांगी थी। सचूना में बताया गया है कि 2014-2015 में 1 करोड़ 57 लाख का बजट रखा गया था। खर्च मात्र 6 लाख 46 हजार किया गया। 2015-2016 में बजट घटकर 1 करोड़ पर पहुंच गया। इस वर्ष करीब साढ़े 16 लाख रुपये खर्च किए गए। 2016-2017 में भी एक करोड़ का प्रावधान किया गया। इस वर्ष बजट को करीब आधा यानि करीब 47 लाख खर्च किया गया। 2017-2018 में बजट घटकर 1 करोड़ से 80 लाख पर पहुंच गया। जबकि खर्च साढ़े 66 लाख किया गया। वित्तीय वर्ष 2018-2019 में दिसंबर 2018 तक मात्र 60 लाख रुपये का प्रावधान किया गया। इसमें से 50 लाख रुपये अब तक अवमुक्त किए गए। जबकि खर्च लगभग साढ़े 42 लाख रुपये हो चुका है।
अब दूसरी बातों पर आते हैं। निर्भया योजना शुरु होने से अब तक निर्भया योजना में तेजाब हमलों के मात्र 10 मामले ही पंजीकृत किए गए हैं। बलात्कार के भी केवल 66 मामले पंजीकृत किए गए हैं। जबकि हकीकत कुछ और है। प्रदेश में बलात्कार के मामले कई गुना बढ़ गए हैं। पिछले तीन सालों में अपराध आकंड़े तेजी से बढ़े हैं। रिपोर्ट के अनुसार जनवरी 2018 से से अक्टूबर तक बलात्कार के 438 केस सामने आए हैं। दहेज के लिए 56 विवाहिताओं को मौत के घाट उतार दिया गया। एसिड अटैक के दो केस और छेड़खानी के 67 केस दर्ज हुए किए गए। रिपोर्ट में ये बात भी सामने आई कि महिलाओं के खिलाफ 70 फीसदी अपराध देहरादून, हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर में हुए हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकारें निर्भया योजना को लेकर कितनी गंभीर हैं।