पूर्णिमा मिश्रा, देहरादूनः देशभर के सभी राज्यों में बच्चों के संरक्षण, देखभाल व बढ़ते अन्यायों से बचाने के लिए बालक की देखरेख और संरक्षण किशोर न्याय अधिनियम के अंतर्गत जिला बाल कल्याण समितियों का गठन किया गया। समिति में एक अध्यक्ष व चार सदस्यों को नामित किया गया, जो बच्चों के हित को ध्यान में रखते हुए संरक्षण और न्याय दिला सके।
समिति को अध्यक्ष सहित सभी सदस्यों को प्रथम दर्जा देते हुए मजिस्ट्रेट की ही तर्ज पर निर्णय लेने की पावर भी दी गई। न्याय पीठ में सभी सदस्यों को सामान्य अधिकार दिया गया। लेकिन किसी प्रकरण में तीन सदस्यों की सहमती नहीं बनती तब अध्यक्ष की राय अभिभावी रहेगी, तीन सदस्य भी मिलकर जांच के उपरांत निर्णय ले सकेंगें। और वो निर्णय बच्चों के सर्वोत्तम हित को ध्यान में रखकर लिया जायेगा। लेकिन हैलो उत्तराखंड न्यूज़ जब किसी सिलसिले में समिति पहुंचा तो जानकारी के अनुसार पता चला कि समिति के सदस्यों के द्वारा मिली स्वतंत्रताओं का फायदा भी उठाया जा रहा है, जिसके कारण ज्यादातर मामलों में दुष्परिणाम ही सामने आ रहे हैं।
जब बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष से सवाल किया गया और जानकारी जाननी चाही कि समिति के द्वारा अभी तक कितने मामलों को सुलझा दिया गया है? तो समिति अध्यक्ष ने जवाब दिया कि सभी प्रकरणों को पंजीकरण व जांच उपरांत निर्णय लिया जाता है, जिनका अधिकार समिति व सदस्यों को दिया गया है, लेकिन कई महत्वपूर्ण हाई प्रोफाइल केसों को हमारे तीन सदस्यों के द्वारा मेरी चलाई गई जांच पूर्ण किए बगैर छोड़ा गया। जिसके कारण बाल कल्याण समिति के पास से बाल तस्करी बधवा मजदूरी और यौन उत्पीड़न के मामले बिना उत्पीड़न में लिप्त लोगों के विरूद्ध कार्यवाही किए बिना ही निस्तारित किए गए हैं। और जिन मामलों में बच्चों को छोड़ा गया है वो मामले बेहद ही संजीदे हैं, जो मानव तस्करी से जुड़े हुए हैं। जिनका सीधा तालुकात बड़े घरानों से है।
कौन से हैं ऐसे मामले जो समिति से छूट चुके हैं और छूटने की कगार पर हैं? अध्यक्ष- पहला मामला ऑर्डिनेंस फैक्ट्री के संयुक्त महाप्रबंधक राजेश रायपा के घर से मुक्त कराई गई दो बहनों का है। एक तेरह साल और एक नौ साल की थी। दोनों बहने पिथौरागढ़ की निवासी हैं। जिसके बाद बाल कल्याण समिति देहरादून में ही दोनों बहनों को संरक्षण के लिए रखा गया था। लेकिन मानव तस्करी जैसे संगीन मामले में भी समिति सदस्यों ने दोनों बहनों को परिजनों के हवाले कर दिया।
दूसरा मामला बिहार से जुड़ा हुआ है जिसमें बाल मजदूरी करने और मानव तस्करी करने जैसे मामले में बच्चे को समिति संरक्षण दे रही थी, लेकिन इस मामले में भी सदस्यों ने बच्चे को मां के पास भेज दिया। ऐसे कई अन्य मामले और भी हैं जिन पर दबाव बनाया जा रहा है कि उन्हें परिजनों को सौंप दिया जाए। जिसमें हाल में उजागर हुए टिहरी में डॉ. द्वारा दो बच्चियों से की गई छेड़छाड़ का मामला भी शामिल है।
किस काम को करने के लिए बनाई गई समिति?
अध्यक्षा- देश भर के सभी राज्यों में बच्चों के संरक्षण, देखभाल व बढ़ते अन्यायों से बचाने के लिए और संरक्षण किशोर न्याय अधिनियम के अंतर्गत जिला बाल कल्याण समितियों का गठन किया गया। लेकिन जिस प्रकार और जितने उम्मीदों से, जिस काम के लिए समिति का गठन किया गया वो काम होता हुआ नजर नहीं आ रहा है। बाल कल्याण समिति में ज्यादातर मामले बच्चों की तस्करी के हैं। लेकिन एक ऐसा मामला था, जो तस्करी से जुड़े होने के साथ ही यौन शोषण से भी जुड़ा हुआ था। इस मामले में दो सगी बहनों को न्याय नहीं मिल सका। मामला हाई प्रोफाइल था, समिति की तहकीकात के बीच में ही तीन सदस्यों की सहमति से दोनों पीड़ित बच्चियों को छोड़ दिया गया। वहीं अध्यक्षा का यह भी कहना है कि टिहरी में डॉक्टर द्वारा पीड़ित बच्चियों को भी सदस्यों पर छोड़ने का दबाव बनाया जा रहा है।
अध्यक्षा- समिति की पॉलिसी है कि यदि किसी मामले में पीड़ित बच्चों के परिजनों के भावनात्मक दबाव व अन्य किसी दबाव के कारण समिति के तीन सदस्यों ने बच्चों को परिजनों के साथ भेजने पर सहमति बना दी तो, बच्चों को परिजनों को सौंप दिया जा सकता है। हालांकि यह बात अध्यक्ष को भी पता होनी चाहिए। लेकिन समिति के हाथों 3 से अधिक मामले छूट चुके हैं जिसमें अध्यक्ष को सूचना ही नहीं थी। जिसके कारण ना ही आरोपियों को सजा मिली और ना ही पीड़ितों को इंसाफ।
समिति अध्यक्ष से हुई इस बातचीत में उठे कई सवाल…
-सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिस प्रकार अध्यक्षा का कहना है कि सदस्य आम दिनों तो कार्यालय नहीं आते हैं और महत्वपूर्ण मामलों में कैसे कार्यालय पहुंच जाते हैं?
-सवाल यह भी है कि आखिर जब बाल कल्याण समिति मामले की तहकीकात कर रही है तो फिर बीच तहकीकात में ही सदस्यों के द्वारा पीड़ित क्यों छोड़ दिए जाते हैं?
-खैर सवाल मात्र यही नहीं है कि आखिर क्यों पीड़ित बच्चों को उनके परिजनों के पास भेज दिया जा रहा है? सवाल यह भी है कि आखिर क्यों सदस्यों के द्वारा पड़ताल पूरी किए बिना ही संगीन मामलों में पीड़ित बच्चों को छोड़ दिया जाता है? क्या उनकी जिम्मेदारी यह नहीं है कि वो बच्चों को इंसाफ दिलाए? क्योंकि जिस प्रकार परिजनों ने असमर्थ होकर जब बच्चों को किसी के यहाँ भेज दिया तो फिर दोबारा उनको ही बच्चों को सौंपकर क्या फायदा? इससे तो फिर कभी भी मानव तस्करी पर रोक नहीं लग पायेगी।
-जिस प्रकार जानकारी के अनुसार पता चला है कि सदस्य आसानी से और बीच पड़ताल में ही बच्चों को छोड़ देते हैं तो सवाल यह भी उठता है कि क्या वॉरंटी है सदस्यों के पास कि परिजन दोबारा बच्चों को किसी और के सुपुर्द नहीं करेंगे?
वहीं उत्तराखंड बाल संरक्षण अधिकार आयोग की सदस्य सीमा डोरा का कहना है कि हमें भी लगता है कि बाल कल्याण समिति के नियमों में बदलाव होना चाहिए। ताकि बच्चों को न्याय मिल सके। साथ ही उनका कहना है कि समिति के नियमों में बदलाव के लिए प्रस्ताव भेजा जायेगा।
वाकई में चौंकाने वाली बात है कि हैलो उत्तराखंड न्यूज़ जितनी बार भी समिति कार्यालय गया है तो वहां अध्यक्षा और एक कर्मचारी के अलावा हमें कोई भी देखने को नहीं मिला। तो फिर अध्यक्ष के द्वारा सदस्यों के ऊपर सवाल उठाना लाजमी है कि क्या सदस्यों का कर्तव्य केवल यही है कि रातों-रात आकर तस्करी और यौन उत्पीड़न के मामले में पीड़ित बच्चों को परिजनों को सौंप दिया जाए?
इसमें सरकार को भी ध्यान देना चाहिए कि उनका मकसद केवल संस्था बनाने तक ही समिति नहीं, बल्कि सरकार को यह भी देखना चाहिए कि क्या समिति वह काम कर भी रही है कि नहीं? जिसके लिए समिति का गठन किया गया।
To be continued…