प्रात: स्मरामि भवभीतिहरं सुरेशं,गंगाधरं वृषभवाहनमम्बिकेशम्। खटांगशूलवरदाभयहस्तमीशं,संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्।
भोले शंकर की पूजा व आराधना का महीना सावन आज से शुरू हो गया है। आज सावन का पहला सोमवार है, जो देवाधिदेव महादेव की पूजा अर्चना के लिए बेहद खास माना जाता है। आज से देश भर के शिव मंदिरों में बोल बम और जय भोले के जयकारे गूंजते रहेंगे। सावन का महीना और भगवान शंकर यानी भक्ति की ऐसी अविरल धारा जहां हर कोई शिवमय होकर पूजा में लगे रहते हैं। आज के दिन भोले भक्त मंदिरों में भोले बाबा कि पूजा के लिए पहुँचते है जिसके चलते देश भर के शिव मंदिरों में सुबह से ही भक्तो का ताता शिव पूजा कर मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए लग जाता है ।
यूं तो भगवान शंकर की पूजा के लिए सोमवार का दिन पुराणों में निर्धारित किया गया है। लेकिन पौराणिक मान्यताओं में भगवान शंकर की पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ दिन महाशिवरात्रि, उसके बाद सावन के महीने में आनेवाला प्रत्येक सोमवार, फिर हर महीने आनेवाली शिवरात्रि और सोमवार का महत्व है। लेकिन भगवान को सावन यानी श्रावण का महीना बेहद प्रिय है जिसमें वह अपने भक्तों पर अतिशय कृपा बरसाते हैं। ऐसा माना जाता है कि दक्ष पुत्री माता सती ने अपने जीवन का त्याग कर कई वर्षो तक शापित जीवन जिया था फिर हिमालयराज के घर पार्वती के रूप में जन्म लेकर भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए माता पार्वती ने पुरे सावन के महीने कठोर तप कर भगवान शिव को पतिरूप में धारण किया था। अपनी भार्या से पुनःमिलाप के चलते भगवान शिव को ये महीना अतिप्रिय है।
ऐसी मान्यता है कि इस महीने में खासकर सोमवार के दिन व्रत-उपवास और पूजा पाठ (रुद्राभिषेक, कवचपाठ, जाप इत्यादि) का विशेष लाभ होता है। सनातन धर्म में यह महीना बेहद पवित्र माना जाता है यही वजह है कि मांसाहार करने वाले लोग भी इस मास में मांस का परित्याग कर देते है।
सावन मास में शिव भक्ति का पुराणों में भी उल्लेख मिलता है। पौराणिक कथाओं में वर्णन आता है कि इसी मास में समुद्र मंथन किया गया था। समुद्र मथने के बाद जो विष निकला उसे भगवान शंकर ने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की लेकिन विषपान से महादेव का कंठ नीलवर्ण हो गया। इसीसे उनका नाम नीलकंठ महादेव पड़ा। विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया। इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने का खास महत्व है। यही वजह है कि श्रावण मास में भोले को जल चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। शिवपुराण में उल्लेख है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं। इसलिए जल से उनकी अभिषेक के रुप में अराधना का उत्तमोत्तम फल है जिसमें कोई संशय नहीं है।
इस बार का सावन सोमवार से शुरू हुआ है और सावन का समापन भी सोमवार को ही होगा यानि ७ अगस्त को, ऐसे संयोग से इस बार के सावन में पांच सोमवार पड रहे हैं इसीलिए इस सावन को खास माना जा रहा है। वही पंडितो कि माने तो इस सावन माह में ३ सोमवार सवार्थ सिद्ध सर्वार्थ सिद्धि योग में शुरू होगा और आखिरी सोमवार के सर्वार्थ सिद्धि योग में खत्म भी होगा। सर्वार्थ सिद्धि योग का वक्त बेहद शुभ होता है. सर्वार्थ सिद्धि योग यानी अपने आप में सिद्ध, इस दिन की गई पूजा या हवन-यज्ञ का महत्व काफी अधिक होता है। इस माह में रोटक व्रत भी काफी अहमियत मानी जाती है. श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार (पांच सोमवार होने से रोटक व्रत कहलाते हैं) को भगवान शिव-पार्वती की प्रीति के लिए व्रत रखकर शिवजी की बेलपत्र, दूध, दही, चावल, पुष्प, गंगाजल सहित पूजा करने से मनोकामना पूरी होती है।
जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमनिनादवड्डमर्वयं
चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥1॥