कर्ज में डूबे एक और किसान ने आत्महत्या कर ली। बताया जा रहा है कि उसे पंजाब नेशनल बैंक की ओर से नोटिस मिला था । जिसके कारण वह पिछले कई दिनों से परेशान चल रहा था। जिस कारण उसने आत्महत्या कर ली।
उधमसिंह नगर के ग्राम बांसखेड़ी निवासी बलविंदर सिंह (39) पुत्र मलूक सिंह ने बुधवार की सुबह जहर खाकर आत्महत्या कर ली। बलविंदर पेशे से एक किसान था। परिवार वाले आनन-फानन में बलविंदर को इलाज के लिए रूद्रपुर ले जा रहे थे लेकिन रास्ते में ही बलविंदर ने दम तोड़ दिया।
उधर किसान के परिजनों द्वारा मामले की तहरीर बेरिया दौलत पुलिस चौकी व थाना केलाखेड़ा में दी गई।
केलाखेड़ा थानाध्यक्ष राजेश यादव ने हैलो उत्तराखंड से हुई बातचीत में बताया कि अब तक हुई तहकीकात में पारवारिक मामले ही सामने निकल के आ रहा है। साथ ही उन्होंने पंजाब नेशनल बैंक द्वारा जारी किए गए नोटिस के सवाल का जवाब देते हुए कहा कि अभी इस मामले पर जांच की जा रही है। वहीं उन्होंने बलविंदर द्वारा जहर खाने की बात स्वीकारी है।
परिवार जनों का कहना है कि बलविंदर ने साढ़े सात लाख रूपये का ट्रैक्टर ऋण व साढ़े चार लाख रूपये की क्रेडिट लिमिट के साथ ही अन्य बैंकों व सहकारी समितियों आदि से 23 लाख रूपए का कर्ज ले रखा था। जिसको लेकर वह पहले से ही परेशान चल रहा था। वहीं पंजाब नेशनल बैंक की ओर से जारी लगभग साढ़े सात लाख की रिकवरी के नोटिस मिलने से वह और दबाव में आ गया। जिसके चलते उसने आत्महत्या कर ली।
वहीं पंजाब नेशनल बैंक के उत्तराखंड हैड (एफ जी एम) विवेक झा का कहना है कि किस्तों के अनुसार ही बैंक लोनधारकों को नोटिस भेजता है जो एक सामान्य प्रक्रिया है। उधर पंजाब नेशनल काशीपुर के हैड अनिल कुमार सचदेवा ने हैलो उत्तराखंड से बातचीत में बताया कि मृतक बलविंदर के नाम पर दो लोन थे। पहला लोन चार लोगों ने मिलकर ट्रैक्टर खरीदने के लिए 2010 में लिया था। जो बलविंदर के दो बेटों सौरभ बलविंदर, गौरभ बलविंदर व् बहन सुनीता और खुद बलविंदर ने नाम पर था। जो उस दौरान 4लाख 70 हजार का था। लेकिन लोन की किस्तें न भरने पर लोन करीब साढ़े सात लाख तक पहुंच चुका था। जिसका नोटिस बलविंदर को गया था। वहीं दूसरा लोन बलविंदर ने अपने नाम पर, पिता मलूक सिंह और भाई कुलदीप के नाम पर कम्बाइंड हार्वेस्टर के लिए 2014 में 12 लाख रूपये का लोन लिया। हालांकि अनिल कुमार सचदेवा ने बताया कि नोटिस केवल 2010 में लिए गए लोन के लिए ही था। आपको बता दें कि बैंकिंग एक ऑटो जनरेटेड सिस्टम पर काम करता है अगर लोन इंस्टालमेंट समय पर नहीं आता है तो सिस्टम ऑटोमेटिकली नोटिस देता है.
गौरतलब है कि प्रदेश में केवल दो ही माह में कर्ज में डूबे चार किसानों की मौत हो चुकी है। आपको बता दें कि इसमें तीन किसानों ने मौत को गले लगाया है और एक किसान की हार्ट- अटैक से मौत हो चुकी है।
लेकिन आखिर मजबूर किसान करे भी तो क्या? कभी मानसून की देरी से तो कभी ज्यादा बारिश से किसानों को हर साल नुकसान होता है लेकिन किसानों की अहमियत को जानने के बावजूद भी आज तक उत्तराखंड सरकार ने कोई खासा कदम नहीं उठाया है। यहां तक कि उनके फायदे के लिए व उनकी जरूरत को जानते हुए कसीदे तो पढ़े जाते हैं पर अफसोस तो यह है कि वो केवल कागजों पर ही रह जाते हैं। ऐसे में उत्तराखंड प्रदेश सरकार को उत्तरप्रदेश सरकार से कुछ सीख लेने की जरूरत है।