रूद्रप्रयाग: भैया दूज के मौके पर ग्यारहवें ज्योर्तिलिंग भगवान केदारनाथ के कपाट बन्द होने की वैदिक परंपराएं शुरु हो गई हैं। छह माह शीतकाल में बाबा के कपाट बन्द हो जाते हैं और तब बाबा केदारनाथ उखीमठ में ही दर्शन देते हैं। कपाट बन्द होने को लेकर मंदिर समिति तैयारियों में जुट गयी है। मंदिर को भव्य रुप से सजाया गया है।
9 नवम्बर को बाबा के कपाट सुबह आठ बजकर तीस मिनट पर बन्द कर दिये जायेंगे। इससे पूर्व केदारनाथ के कोतवाल कहे जाने वाले रक्षपाल बाबा भकुण्ड भैरव के कपाट 6 नवम्बर को बन्द कर दिये गये थे। मान्यता के अनुसार जब बाबा भैरब नाथ के कपाट बन्द हो जाते हैं तो केदारनाथ भगवान की श्रृंगार पूजा नहीं होती है। महज निर्वाण रुप में ही अभिषेक होता है। और बाबा केदार के कपाट बन्द होने के बाद अगले छह महीनों तक केदारपुरी की रक्षा बाबा भकुण्ड भैरब की करते हैं। कपाट बन्द होने की 8 नवम्बर से तैयारियां शुरु कर दी गयी हैं। वैदिक पूजाओं के साथ ही बाबा की पंचमुखी चल विग्रह उत्सव डोली को सभा मण्डप में स्थापित कर दिया गया है। और शीतकाल में छह माह तक जलने वाली अखण्ड ज्योति को स्थापित कर दिया गया है। रात्रि 3 बजे से कपाट बन्द होने की प्रक्रियाएं शुरु हो जायेंगी। 4 बजे से रात्रि 5 बजे तक समाधि पूजा होगी।
इस दौरान बाबा को छह माह के लिए समाधिष्ट किया जायेगा और सुबह 6 बजे मंदिर के गर्भ गृह के कपाट बन्द कर दिये जायेंगे। 9 नवम्बर को सुबह बाबा की चल विग्रह डोली को सूर्य की पहली किरण के साथ ही सभा मण्डप से बाहर निकाला जायेगा और आठ बजकर तीस मिनट पर मंदिर के कपाट बन्द कर दिये जायेंगे। डोली अपने शीतकालीन गद्दी स्थल उखीमठ पहुंचने से पहले पहली रात्रि रामपुर, दूसरी रात्रि गुप्तकाशी में रात्रि विश्राम करेगी और 11 नवम्बर को ओंकारेश्वर मंदिर उखीमठ पहुंचेगी जहा अगले छह माह तक बाबा की नित्य पूजायं होगी।