…अब युकाडा का नया कारनामा, हेली सेवाओं में बिना टेंडर/विज्ञप्ति के ही दिया नई कंपनी को टेंडर

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देहरादून: प्रदेश में एक बार फिर हेली सेवाओं में विवाद खड़ा हो चला है। यात्रा शुरू होने से पहले ही टेंडर को लेकर कई विवाद हेली सेवाओं से जुड़े, लेकिन इस बार बिना टेंडर के भी विवाद खड़ा हो चला है।

दरअसल, अब युकाडा ने बिना किसी टेंडर व विज्ञप्ति के ही एक नई हेली कंपनी को उड़ान के लिए आमंत्रित किया है। इतना ही नहीं बल्कि, बाकायदा हेलिपैड भी युकाडा ने ही उपलब्ध कराया है, जिससे कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। जबकि, सामान्यतया हैलीपैड खुद ऑपरेटर द्वारा चुना जाता है।

बाते दें, टेंडर की शर्तों के अनुसार प्रत्येक रूट पर तीन हेलीकॉप्टरों ने उड़ान भरनी थी, इसके लिए जिस रूट पर पवन हंस, यूटी एयर व पिनैकल एविएशन कंपनी की तिकड़ी उड़ान भर रही थी, उस रूट पर पिनैकल के हेलीकॉप्टर में खराबी के कारण चिप्सन एविएशन को सेवाएं देने के लिए शामिल किया गया। जबकि, यूटी एयर और पवन हंस की लगातार उड़ानों से सरकार के राजस्व पर कोई फर्क नहीं पड़ा।

ऐसे में कई गंभीर सवाल ये उठते हैं कि, बिना टेंडर की शर्तों के कैसे किसी कम्पनी को आमंत्रित किया गया। जबकि, इस दशा में युकाडा को विज्ञप्ति निकल सभी को बराबरी का मौका दिया जाना चाहिए था।

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इस नई कम्पनी चिप्सन को 4 जुलाई 2017 को परमिट जारी हुआ, यानि यह कंपनी करीब एक साल का अनुभव रखती है। ना ही कम्पनी के पास केदारनाथ में उड़ान का कोई अनुभव है।

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जबकि, टेंडर की शर्तों के अनुसार यहाँ उड़ान भरने के लिए दो वर्ष का अनुभव होने की शर्त रखी गई थी।

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टेंडर में एनुअल सेफ्टी ऑडिट तीन साल का होना अनिवार्य था, लेकिन इस कंपनी को टेंडर देने के लिए उस क्लॉज़ को भी हटा दिया गया। जिससे यह साफ है कि नागरिक उड्डयन विकास प्राधिकरण चिप्सम एविएशन को  टेंडर हर हाल में देना चाहता था। जिस तरह से यूकाडा ने टेंडर की शर्तों का पूरी तरह उल्लंघन कर कंपनी को काम दिया, उसमें मिलीभगत की भी बू आ रही है।

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इस तरह यह कई अहम शर्तों को भी पूरी नहीं करती। वहीँ इस कम्पनी से इतर कई कम्पनियां इससे अधिक योग्यता व अनुभव रखते हैं। तो उन्हें आमंत्रित ना करना अपने आप में कई सवाल खड़े करते हैं। साथ ही नई कंपनी को युकाडा द्वारा ही हैलीपैड उपलब्ध करवाना भी किसी मिलीभगत की ओर इशारा करते हैं। यदि ऐसे ही मनमानी के चलते युकाडा द्वारा कम्पनियों को आमंत्रित करना हो, तो फिर पूर्व में टेंडर का क्या औचित्य रह जाता है। इतना होने के बाद भी सरकार क्यों मोन है जो जीरो टॉलरेंस का डंका बहुत ज़ोरों से बजा रही है।

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