नई दिल्ली: दागी जनप्रतिनिधियों के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा निर्णय दिया है। सीजेआई दीपक मिश्रा ने कहा कि भ्रष्टाचार, राष्ट्रीय आर्थिक आतंकवाद है। दागियों के संबंध में सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि दागी जनप्रतिनिधियों को अयोग्य ठहराने के लिए अदालत आदेश नहीं दे सकता है। संसद को इस संबंध में कड़े कानून बनाने चाहिए। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि संसद को ये सुनिश्चित करने की जरूरत है कि अपराधी, राजनीति में न आ सकें। अगर किसी उम्मीदवार का पिछला रिकॉर्ड आपराधिक है तो अदालत रोक नहीं लगा सकती है। इस संबंध में संसद को आगे आना होगा।
संसद में जनप्रतिनिधि आम जनता की आवाज उठाते हैं। ये वो माननीय है जो देश के लिए कानून भी बनाते हैं। लेकिन जनप्रतिनिधि दागी हो या उसके खिलाफ संगीन मामले चल रहे हों तो क्या उसे कानून बनाने का अधिकार मिलना चाहिए। संवैधानिक बेंच के सामने अहम सवाल ये है कि आपराधिक मामलों में आरोप तय होने के बाद क्या किसी शख्स के चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जानी चाहिए या नहीं। इसके साथ ही एक सवाल ये भी है कि ट्रायल के किस चरण पर नेताओं को अयोग्य ठहराया जा सकता है।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई में संवैधानिक बेंच ने कहा था कि संसद का काम ये है कि वो कानून बनाए। लेकिन किसी कानून की व्याख्या करना अदालत का काम है। अदालत अपनी लक्ष्मण रेखा को अच्छी तरह से समझता है। ये बात सच है कि अदालत का काम कानून बनाना नहीं है। लेकिन दागी नेताओं के केस पर तेजी से सुनवाई हो सकती है।
याचिकाकर्ता का कहना है कि 2014 में संसद में 34 फीसद से ज्यादा ऐसे उम्मीदवार पहुंचे जिनके खिलाफ क्रिमिनल केस है। ऐसे में सवाल ये है कि जिन लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज है क्या वो कानून बना सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने 8 मार्च 2016 को यह केस संवैधानिक बेंच के हवाले किया था।