बिहार – मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस्तीफे के बाद बिहार की राजनीतिक भूचाल आ गया था लेकिन आज नीतीश कुमार सुबह एक बार फिर बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है।
नीतीश ने इस बार महागठबंधन से नाता तोड़ते हुए एनडीए के साथ फिर हाथ मिला लिया है। एनडीए के समर्थन से नितीश ने सरकार बनाई है। नितीश की घर वापसी से एक बार फिर एनडीए बिहार में सत्ता में वापसी कर ली है।
2015 में बिहार के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद बीजेपी और सहयोगी दलों को जो हार मिली वह बीजेपी के लिए अप्रत्याशित थी और बीजेपी के रणनीतिकारों के गणित को फेल करती दिखी। तब बीजेपी ने धीरे-धीरे नीतीश कुमार पर हमले कम करने की योजना बनाई और केवल आरजेडी पर हमले तेज कर दिए। जिसके बाद से बीजेपी नितीश को अपने पुराने गठबंधन के दिन याद दिलाने लगी इसी बीच लालू के विभिन्न ठिकानो पर छापा पड़ने और बिहार के उप-मुख्यमंत्री तेस्जस्वी यादव पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप ने एनडीए और जेडीयू के गठबंधन की पटकथा लगभग लिख ही डाली थी।
लेकिन फिर भी नितीश गठबंधन को बचाने की कोशिश करते रहे और अपनी सरकार में भ्रष्टाचार के आरोपों से बाहर निकलने के लिए बिहार के उप- मुख्यमंत्री और लालू के बेटे तेजस्वी यादव से इस्तीफे की मांग कर डाली।
मामले में तेजस्वी के पिता जी लालू यादव के हस्तक्षेप और लालू के बिगड़े बोलों ने एनडीए और जेडीयू की बिहार में वापसी पक्की कर दी। फिर क्या था नितीश ने कड़ा कदम उठाते हुए खुद ही मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे डाला और फिर रात को एनडीए के साथ बैठक कर सरकार बनाने की रणनीति भी तैयार कर ली और आज बहुमूत साबित कर एक बार शपत ग्रहण कर बिहार के मुख्यमंत्री बन गए है।
अब सवाल ये उठता है की बिहार की सत्ता पर इतने सालों से राज करने वाले लालू यादव, जिन्हें राजनीती का मझा हुआ खिलाडी माना जाता है वो नितीश के इस कदम को भाप क्यों नही पाए पहले ही, क्या बेटे का मोह लालू पर इतना हावी हो गया था की वो आने वाले इस खतरे का अंदाजा भी नही लगा पाए या अब लालू की राजनीती को लेकर समझ पहले जैसी नही रही।